Share Holding Period Kya Hai, Share Kharidne Ke Baad Kya Kare- इनफ़ोसिस के 200 शेयर्स 1700 रूपए की कीमत में ख़रीदा और इसको 1 साल तक अपने पास रखने को ठान लिया. share कैसे ख़रीदे? share खरीदने के बाद क्या करना होता है?
जानिए Investors के लिए Holding क्या होती है और शेयर होल्डिंग अवधि क्या होता है इसका असर, देखें यह वीडियो
Stock Market में शेयर्स खरीदने और बेचने के अलावा एक और महत्वपूर्ण पहलू है जिसको हम Holding कहते हैं। शेयर्स को होल्ड करने वाले Investors सही समय का इंतजार करते हैं और फिर तय करते हैं कि कौन सा शेयर बेचें या खरीदें। जब शेयर्स को खरीदने के बाद लंबे समय के लिए अपने पास रखते हैं तो उसे शेयर को होल्ड करना कहते है। शेयर को लंबे समय तक होल्ड करने से रिस्क फैक्टर कम होता है और रिटर्न मिलने की संभावना अधिक होती है। साथ ही Investor को Trading और Investing एक ही जैसे लगती है लेकिन ऐसा नहीं है। Trading में आप Short Term के लिए हाई-रिस्क पर शेयर्स में पैसे लगाते हैं और उन्ही से मुनाफा कमाते हैं। वहीं Investing करने वाले लोग शेयर्स को खरीद कर लंबी अवधि तक होल्ड करते हैं और सही समय देखकर शेयर्स को बेचना चाहिए या और इंतजार करना चाहिए।
शेयर खरीदने के बाद क्या करे?
एक बार share खरीदने के बाद वे शेयर्स आपके demat account में रख जाते है. अब आप कंपनी के हिस्सेदार बन चुके है कंपनी के हिस्सेदार होने की वजह से आपको stock split, rights issue, bonuse, dividend आदि कंपनी की तरफ से सुविधाएं प्राप्त होती रहंगी. इनके बारे में भी बाद में चर्चा करेंगे.
बहुत से लोग इसे नहीं जानते है की share holding period क्या है? इसका मतलब ये होता है की जब भी हम शेयर खरीदते है और उन शेयर को जल्दी बेचने की बजाय अपने पास लम्बे समय तक रखते है. इसके बारे में वोरन बफेट ने कहा – Holding period 1 मिनट से लेकर शेयर होल्डिंग अवधि महेसा के लिए भी हो सकता है. मतलब की उन shares को हमेशा के लिए भी रख सकते है.
उदहारण-
यदि इनफ़ोसिस का शेयर 1700 रूपए का है और वह 5,10 मिनुट्स में 1720 हो गया हो तो ये इतने कम समय में अच्छा return है और यदि आप इतने मुनाफे से खुस है तो आप इस सौदे को बंद करके मार्किट से निकल भी सकते है. ऐसा होना संभव है क्योकि मार्किट में तेजी होने पर इस तरह के मौके आते रहते है.Share Holding Period Kya Hai
रिटर्न कैसे देखे?
मार्किट में सभी चीजें खास है हम पता करते है की आपको अपने निवेश पर अच्छा रिटर्न मिल रहा है या नहीं. अगर आप अपने सौदे में अच्छी कमाई कर रहे हैं या फिर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं तो आप की सभी पुरानी गलतियां माफ की जाती हैं क्योंकि शेयर मार्किट में रिटर्न पाना ही सबसे महत्वपूर्ण है.
ज्यादातर रिटर्न को साल भर में ही देखा जाता है, रिटर्न नापने के कई तरीके हैं जिनके बारे में जानना बेहद जरुरी है. निचे कुछ तरीके बताएँगे, जिससे आप रिटर्न नाप सकते है और साथ ही कैलकुलेट करना भी सीख जायेंगे.
ऐब्सल्यूट रिटर्न ( Absolute Return ) –
आपक इस absolute return से पता चलेगा की अपने सौदे या निवेश पर कुल कितना मुनाफा कमाया है. आपको यह हिस्सा इस सवाल का जवाब देता है कि मैंने अगर इंफोसिस 1700 रूपए की कीमत पर खरीदा और 1750 रूपए की कीमत पर बेचा है तो मैंने कुल कितने प्रतिशत पैसे इस सौदे में कमाए है. इस रिटर्न को मापने का सरल फार्मूला ये है :
यह काफी अच्छा रिटर्न है.
कम्पॉउंड ऐनुअल ग्रोथ रेट यानी सीएजीआर ( Compound Annual Growth Rate -CAGR ) –
अगर आप अपने 2 इन्वेस्टरस की तुलना करना चाहते हैं तो कुल रिटर्न यानी ऐब्सल्यूट रिटर्न ज्यादा अच्छा मापक नहीं है. इसके लिए तो आपको CAGR की मदद लेना काफी ठीक होगा. यदि मैं इंफोसिस का शेयर शेयर होल्डिंग अवधि 1700 की कीमत में खरीदा और उस शेयर को 2 साल तक अपने पास (holding period) रखा
और इसके बाद 1750 रूपए में बेच दिया तो इन 2 सालों में मेरे share की कीमत कितनी रफ़्तार से बढ़ी. ये जानने के लिए CAGR काम आएगा. जब रिटर्न ऐब्सल्यूट रिटर्न में इसकी कोई भूमिका नहीं होती है. CAGR को पता करने का फार्मूला है-
यहाँ Ending Value= बेचने बाली कीमत
Begining Value खरीदने वाली कीमत
अब फार्मूले को सवाल में डालें तो –
इसका मतलब है निवेश 1.46% की रफ्तार से दो साल तक बढ़ा. हम सब को पता है कि इस समय देश में कई जगहों पर फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर 1.46% तक का रिटर्न मिल रहा है और वहाँ पर रकम भी सुरक्षित रहती है. ऐसे में 1.46% का रिटर्न आकर्षक नहीं लगेगा.
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