क्या कहते हैं आंकड़े
हाल ही में खबर आई थी कि भारत का अमेरिका संग व्यापार अधिशेष 20 अरब डॉलर से अधिक हो गया है. इसके अलावा केंद्रीय बैंक के आंकड़ों में भी कहा गया था कि भारत ने 2019 के अंत तक विदेशी मुद्रा खरीदने के मामले में तेजी दिखाई थी. आंकड़ों के अनुसार साल 2020 के जून महीने तक भारत ने 64 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की खरीद की थी. यह संख्या जीडीपी का 2.4 फीसदी है. अगर किसी देश को 'करेंसी मैनिपुलेटर' माना जाता है, तो उसपर तुरंत तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता, लेकिन इस सूची में शामिल होने के बाद उस देश की वैश्विक वित्त बाजार में साख जरूर कम हो जाती है.
मूल्य सूची बनाना (Project Service)
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Project Service Automation अनुप्रयोग संस्करण 2.x और 1.x पर लागू होता है
मूल्य सूचियाँ एक ऐसा टेम्पलेट बनाती हैं, जिनका उपयोग आपके खाता प्रबंधक, कोट और परियोजनाएँ बनाने, और परियोजना की लागत स्थापित करने के लिए कर सकते हैं. वे भूमिकाओं और व्यय, और प्रत्येक के लिए आपके द्वारा लिए जाने वाले मूल्य की एक पंक्ति आइटम सूची प्रदान करते हैं. आप एकाधिक मूल्य सूचियाँ बना सकते हैं, ताकि आप भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लिए, जहाँ आप विक्रय करते हैं या भिन्न-भिन्न विक्रय चैनल के लिए, अलग-अलग मूल्य संरचनाओं को बनाए रख सकें. आप अपने ग्राहकों से जिन मुद्राओं में बिल करने की योजना बनाते हैं, उनमें प्रत्येक मुद्रा के लिए कम से कम एक मूल्य सूची बनाना एक अच्छा विचार है.
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अमेरिका की निगाह में भारत 'करेंसी मैनिपुलेटर'. जानें क्या है इसका मतलब
नए राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) के नेतृत्व में अमेरिका ने पहले की तरह एक बार फिर भारत को तगड़ा झटका दिया है. उसने भारत (India) को 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची में डाल दिया है. गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत को लेकर ये कदम उठाया है. इससे पहले 2018 में भी भारत को सूची में डाला गया था लेकिन फिर 2019 में हटा दिया था. अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने भारत सहित कुल 10 देशों को इस सूची में शामिल किया है. इनमें सिंगापुर, चीन, थाईलैंड, मैक्सिको, जापान, कोरिया, जर्मनी, इटली और मलेशिया तक शामिल हैं. मंत्रालय ने कहा है कि इन देशों में मुद्रा संग्रहण और इससे जुड़े अन्य तरीकों पर करीबी नजर रखी जाएगी. अधिकारी ने बताया कि भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस (Trade Surplus) साल 2020-21 में करीब पांच अरब डॉलर तक बढ़ गया है. यहां ट्रेड सरप्लस का मतलब है, किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो जाना.
तकनीक की दुनिया में भारत की धमक, अब नोट या सिक्के नहीं डिजिटल करेंसी का भी होगा इस्तेमाल
By: पूनम पनोरिया | Updated at : 30 Nov 2022 06:28 PM (IST)
1 दिसंबर से लॉन्च हो जाएगा डिजिटल रुपया
जीवन यापन के लिए जरूरी चीजों में से एक है मुद्रा, जिसे हम रुपया या पैसा भी कहते हैं. पुराने समय से लेकर आधुनिक जीवन में इसके इस्तेमाल के तरीके में लगातार बदलाव हुआ है. पहले जहां लोग वस्तुओं के लेन-देन से चीजों को आपस में इस्तेमाल करते थे, वहीं उसके कुछ समय बाद अलग-अलग धातु की मुद्रा बाजार में आ गई और फिर कागजी नोटों का भी देन-लेन शुरू हुआ. लेकिन आज के दौर में चीजें लगातार बदल रही हैं, लोगों की आवश्यकता के मुताबिक इनमें बदलाव किए जा रहे हैं.
इस समय यदि हम कहीं कुछ खरीदारी या फिर खाना-खाते हैं तो कैश के साथ-साथ ऑनलाइन पेमेंट का विकल्प भी है. अधिकतर लोग ऑनलाइन पेमेंट का इस्तेमाल करते हैं. वहीं बाकि लोग भी इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं. धीरे-धीरे कैश पेमेंट का विकल्प कम होता जा रहा है. लोगों ने कैश रखना भी कम कर दिया है. क्योंकि किराने की दुकान, दूध, सब्जी वाले तक के पास ऑनलाइन पैसे लेने की सुविधा आ गई है.
1 डॉलर जल्द ही होगा 80 रुपया के करीब, जानिए कैसे यह उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगा
कमजोर रूपया की मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? वजह से इलेक्ट्रॉनिक्स, पैक्ड फूड आइटम्स (तेल से तैयार), विदेश शिक्षा, यात्रा के लिए अधिक भुगतान करना होगा.
अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वालों के लिए डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट चिंता का विषय है. रुपया लगातार तीन सत्रों में गिरकर गुरुवार को सात पैसे की रिकवरी से पहले 79.81 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था. हालांकि, विदेशों में मजबूत अमेरिकी मुद्रा और विदेशी मुद्रा के लगातार आउटफ्लो की वजह से रूपए को फायदा नहीं मिल सका.
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समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, गुरुवार को रुपया 9 पैसे की गिरावट के साथ अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.90 के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था. यह 80 के मनोवैज्ञानिक स्तर से कुछ ही दूरी पर स्थित है.
ब्लूमबर्ग ने बुधवार को बताया था कि रुपया आखिरी बार 79.8788 प्रति डॉलर पर चल रहा था जो 80 अंक के करीब था.
रुपये में गिरावट का उपभोक्ताओं पर क्या असर होगा?
फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तब से भारतीय मुद्रा 26 से अधिक बार नए निम्न स्तर पर पहुंच गई है. भारत की अर्थव्यवस्था आयात पर निर्भर है, इसलिए वो मुद्रास्फीति के दबाव में गिरते रुपये के असर को महसूस कर सकता है. यह उन परिवारों के खर्च करने के निर्णयों को प्रभावित कर सकता है जिनके पास कम पैसे बचे होंगे.
आयात की जाने वाली वस्तुओं के लिए भुगतान डॉलर में करना पड़ता है. इसलिए कमजोर रुपया होने से आयात करने वाले सामानों की कीमतें बढ़ जाती है.
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बीएनपी परिबा बाय शेयरखान के शोध विश्लेषक, अनुज चौधरी ने कहा, ‘‘हमारा अनुमान है कि मजबूत डॉलर और वैश्विक बाजारों में जोखिम उठाने से बचने के रुख के चलते रुपया अभी नकारात्मक रुख के साथ कारोबार करेगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के प्रवक्ता गेरी राइस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में और मंदी पर चिंता व्यक्त की है और कहा कि वर्ष 2023 में कुछ देशों में मंदी की आशंका है.''
फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में आक्रामक वृद्धि की आशंका से भी रुपया दबाव में रहा. इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.29 प्रतिशत बढ़कर 110.05 हो गया. वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.24 प्रतिशत बढ़कर 91.06 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? था.
बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,093.22 अंक की गिरावट के साथ 58,840.79 अंक पर बंद हुआ. शेयर मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? बाजार के अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने शुक्रवार को शुद्ध रूप से 3,260.05 करोड़ रुपये के शेयर बेचे.
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