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‘शुद्ध’ राजनीति का मूल्यांकन
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चुनावी राजनीति ने नया रूप ले स्केलिंग रणनीति के बारे में सवाल लिया है। अब यहां पर हर कोई सत्ता का हिस्सा बनना चाहता है। इसमें हाशिये के समूहों के नेता भी शामिल हैं। इसे लोग सिद्धांतों के साथ खड़ा होने के तौर पर नहीं बल्कि संभावनाओं के साथ चलने के तौर पर देख रहे हैं।
ऐसे में राजनीतिक रुख को तय करने का काम ‘संभावनाओं की राजनीति’ के जरिए हो रहा है। इस वजह से हम ऐसी राजनीति की आलोचना करते हुए वैकल्पिक राजनीति की बात करने को बाध्य हैं। इसमें सबसे बुनियादी बात यह होनी चाहिए कि नैतिक न्यूनतम जरूरतों के हिसाब से जीवन चलाने की व्यवस्था हो। यह शर्त सार्वभौमिक तौर पर लागू होती है। क्योंकि इसमें हर किसी के लिए सम्मान है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या चुनावी राजनीति में वास्तविक बदलावों से समाज के लिए नैतिक न्यूनतम जरूरतें पूरी होती हैं?
ऐसे में उन वास्तविक तत्वों को समझना जरूरी है जिसके आधार पर नैतिक न्यूनतम के लक्ष्यों को हासिल किया जाना चाहिए। अभी की राजनीति की आलोचना का मतलब तब ही है जब शुद्ध या आदर्श राजनीति का विकल्प पेश किया जाए। ऐसी राजनीति नैतिकता और बौद्धिक प्रयासों पर आधारित होनी चाहिए। इसमें यह क्षमता होनी चाहिए कि समीकरणों और तोड़मरोड़ के आधार पर होने वाली राजनीति का सामना कर सके। इस लिहाज से कहें तो शुद्ध राजनीति का विचार मौजूदा राजनीति की आलोचना की तरह है।
राजनीति में सर्वोपरी रणनीति यह है कि इसमें एक तरफ सामाजिक, सांस्कृतिक और भौतिक चीजों के प्रति चिंता हो और दूसरी तरफ इसके बोझ से पूरी तरह से बचा जाए। सत्ताधारी पार्टी अपनी विशेष स्थिति का फायदा उठाकर उन नेताओं को अपने साथ ला सकती है जो वास्तविक समीकरणों में एक तरह से बोझ हैं लेकिन सामाजिक तौर पर उन्हें शामिल करके सत्ताधारी पार्टी समावेशी राजनीतिक पार्टी के तौर पर स्थापित करना चाहती है। यह भी कह सकते हैं कि सत्ता की चाह वाले ऐसे लोग गरीबों की पार्टियों को स्थायी बोझ मान सकते हैं।
आदर्श स्थिति तो यह है कि ऐसे दलों में आने वाले लोगों की मुक्ति के उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए। यह प्रतिबद्धता उन नेताओं में दिखती थी जिन्होंने 1936 स्केलिंग रणनीति के बारे में सवाल में भीम राव आंबेडकर की इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी यानी आईएलपी में शामिल होने का निर्णय लिया था। यहां एक सवाल प्रासंगिक हैः क्या अभी की दलित पार्टियों में आईएलपी की मूल भावना है?
ताकतवर सत्ताधारी पार्टियां इस तरह के आंतरिक पलायन को सही मानती हैं। क्योंकि इसके तहत वे उन लोगों को अपने साथ जोड़ने का दावा करते हैं जिन्हें दूसरी पार्टियों ने नजरअंदाज किया। इससे यह दावा भी सही मालूम होता है कि वह समावेशी पार्टी है। क्या इसका निष्कर्ष यह है कि ऐसी पार्टियां शुद्ध राजनीति कर रही हैं? क्या शुद्ध राजनीति की शर्तों को ऐसी पार्टियां पूरा करती हैं?
इस दौर के कुछ दावों का जिक्र जरूरी है जिनके जरिए सकारात्मक राजनीति की बात की जाती है। आरक्षित सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी को राजनीतिक विश्लेषक जाति की राजनीति का अंत स्केलिंग रणनीति के बारे में सवाल मान रहे हैं। इससे चुनावी राजनीति में एक सकारात्मक आयाम जुड़ता है। हालांकि, यह न्याय की सबसे रियायती अवधारणा है? भाजपा के बारे में यह बात तब कही जा सकती थी जब वह सामान्य सीटों से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाती और वे जीत जाते। यह एक वास्तविक सकारात्मक कदम होता। यही बात अल्पसंख्यक और महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर भी लागू होती है।
एससी और एसटी उम्मीदवारों के आरक्षित सीटों से जीतने पर तुलनात्मक तौर पर आत्मविश्वास की बढ़ोतरी उन वर्गों में होती है जो खुद को अपने मूल सामाजिक समूह से श्रेष्ठ मानते हैं। लेकिन मूल सवाल बरकरार है कि क्या इस तरह की चुनावी राजनीति से ऐसे उम्मीदवार आत्म सम्मान हासिल करते हैं?
इस असमान स्थिति की स्केलिंग रणनीति के बारे में सवाल वजह से एससी/एसटी सदस्य और अन्य सांसद लोक संस्थानों और सार्वजनिक परिदृश्य में खुद को समान स्थिति में नहीं पाते हैं। प्रभावी नेताओं के ‘कल्ट वाले व्यक्तित्व’ की वजह से वे संतुष्टि हासिल करते हैं। पार्टियों का आंतरिक तंत्र ऐसा है जिसमें किसी खास नेता के प्रति नीचे के नेताओं की श्रद्धा को बढ़ावा दिया जाता है। इसमें शुद्ध राजनीति के तहत आने वाला समान व्यवहार नहीं दिखता। चुनावी राजनीति के असमान संबंधों का परिणाम यह होता है कि ये प्रतिनिधि शुद्ध राजनीति के नैतिक न्यूनतम से दूर होते चले जाते हैं।
- गोपाल गुरू
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सांकेतिक तस्वीर
- इंग्लिश, रीजनिंग, मैथ्स और जनरल अवेयरनेस के अलावा कंप्यूटर से सवाल आते हैं।
- इंग्लिश में स्पेलिंग, वाक्य लिखने, ग्रैमर और वकैब्यूलरी मजबूत करने पर जोर दें।
- रीजनिंग में कॉन्सेप्ट को अच्छी तरह से समझें और बार-बार प्रैक्टिस करें।
- मैथ्स के फॉर्म्युले को याद करें और उस पर आधारित सवालों को हल करें
- जनरल अवेयरनेस के लिए न्यूज पेपर, मैगजीन को पढ़ें और न्यूज देखें। हाल की घटनाओं का नोट बना लें।
- कंप्यूटर की बेसिक को अच्छी तरह मजबूत कर लें।
आरपीएससी आरएएस प्रारंभिक परीक्षा 2021 में स्मरण रखने योग्य बातें- पांच निरसन तकनीक
- विकल्पों से निरसनकरना
- प्रारंभिक परीक्षा में सही विकल्प पर पहुंचने का पहला कदम दिए गए कथनों में से एक निश्चित रूप से सही या गलत कथन की पहचान करना है।
- यह विधि बहु-कथन प्रश्नों पर लागू होती है। स्केलिंग रणनीति के बारे में सवाल
- एक बार जब आप सही/गलत कथनों की पहचान कर लेते हैं, तो उन विकल्पों को खोजने का प्रयास करें जो उस कथन को बाहर/शामिल करते स्केलिंग रणनीति के बारे में सवाल हैं (प्रश्न की मांग के अनुसार)।
- इस पद्धति को लागू करने से प्रायः आपके पास मात्र एक विकल्प ही शेष रह जाता है, जो प्रायः सही विकल्प होता है।
- उम्मीदवारों द्वारा इस पद्धति का उपयोग तब किया जाना चाहिए जब वह निरसन के पश्चात दो विकल्पों पर पहुंच गया हो।
- अतः, इस मामले में, सही विकल्प प्राप्त होने की संभावना 50-50 है। इस परिदृश्य में, एक उम्मीदवार को दो विकल्पों में से किसी एक का चयन कर प्रश्न को हल करने का प्रयास करना चाहिए।
- अधिकतम कथन:
- दिए गए प्रश्न में से किसी एक विकल्प/कथन का निरसन करने के लिए उम्मीदवारों को इस पद्धति का उपयोग करना चाहिए।
- इस कथन का निरसन करने के 50, उम्मीदवार प्रायः सही विकल्प पर पहुंच सकते हैं।
- चेतावनी: इस विधि का प्रयोग तभी करना चाहिए जब
- उम्मीदवारों ने पहले से ही निरसन की अन्य विधियों का उपयोग किया हो।
- प्रश्न सामाजिक क्षेत्र से है। उदाहरण के लिए, यदि एक कथन कहता है कि ‘X योजना भारत से भूख को समाप्त कर देगी। यह कथन असत्य होगा।
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