अभिभाषक संघ अध्यक्ष का त्रिकोणीय मुकाबला
उज्जैन। अभिभाषक संघ के चुनाव में तीन वरिष्ठ अभिभाषक चुनाव लड़ रहे हैं और कार्यकारिणी सदस्यों का पिछले दिनों निर्विरोध निर्वाचन हो चुका है। त्रिकोणीय संघर्ष होने के कारण इस बार अधिक शक्ति प्रदर्शन हो रहा है।
जिला अभिभाषक संघ का चुनाव 25 नवंबर को होने जा रहा है। इस चुनाव को लेकर प्रचार का दौर अभी चल रहा है। अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला त्रिकोणीय है जिसमें अभिभाषक सुरेंद्र चतुर्वेदी, प्रमोद चौबे त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? और अशोक यादव के बीच मुकाबला है। त्रिकोणीय मुकाबले में खास बात यह है कि सुरेंद्र चतुर्वेदी जो कि तीन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं, वहीं अभिभाषक अशोक यादव जो कि 2 बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं, वही प्रमोद चौबे जो कि एक बार पूरा कार्यकाल और एक बार आधा कार्यकाल कर चुके हैं, इसलिए अभिभाषक संघ अध्यक्ष का चुनाव अनुभवी एडवोकेट के बीच में होने त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? जा रहा है। 1374 मतदाता इस चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसमें सबसे अधिक वोटरों की संख्या ब्राह्मण समाज की है। ब्राह्मण समाज के 350 वोट हैं, वहीं ठाकुर समाज के 150 और मुस्लिम समाज के 150 इसके अलावा बचे हुए वोट अन्य समाजों के भी हैं, ऐसे में यह मुकाबला रोचक होगा।
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सभी अभिभाषक पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं इसलिए उनका कहना है कि हमने अध्यक्ष रहते त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? हुए जो काम किए हैं उसी आधार पर हम चुनाव जीतेंगे। इसी प्रकार सचिव पद के लिए भी मुकाबला त्रिकोणीय है। इसमें पहले सचिव रह चुके प्रकाश चौबे चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं उनके सामने शैलेश मनाना एवं एक अन्य उम्मीदवार चुनाव में सामने हैं। उपाध्यक्ष एवं सह सचिव पद के लिए भी मुकाबला होना है। 25 नवंबर की शाम को या देर रात तक इस चुनाव का परिणाम आ जाएगा। फिलहाल चुनाव को लेकर अध्यक्ष पद के उम्मीदवार चाय पार्टी और भोजन के आयोजन अपने समर्थक अभिभाषक के साथ कर रहे हैं। न्यायालय में अभिभाषक संघ चुनाव को लेकर हलचल मची हुई है।
क्या कहता है वास्तु नियम, जब भूखंड बढ़ा हो या कटा ?
वास्तु के अनुसार वर्गाकार और आयताकार भूखंड पर बने भवन श्रेष्ठ होते हैं। परन्तु कभी-कभी किसी भूखंड या उस पर बने भवन का कोई कोण या विदिशा बढ़ा हुआ अथवा घटा हुआ होता है, ऐसी स्थिति में भूखंड या भवन विदिशाओं की बढ़ी या घटी दशा के अनुसार शुभ अथवा अशुभ फल देने वाले हो सकते हैं।
भूखंड के बढे़ होने का अर्थ है कि वह किसी कोण या विदिशा की तरफ से आगे निकला हुआ है।अर्थात भूखंड का वह कोण 90 अंश से अधिक है। इसी प्रकार भूखंड के घटे होने से तात्पर्य उसके किसी कोण या विदिशा का कटा हुआ होना है। इसमें भूखंड का घटा हुआ कोण 90 अंश से कम त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? हो जाता है।
ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा
भूखंड के ईशान कोण का बढ़ा हुआ वास्तु शास्त्र की दृष्टि में शुभ माना गया है। ऐसे भूखंड पर निर्मित भवन में रहने वाले लोगों को सम्मान,सुख व प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है, धन का आगमन होता है। त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? इसके विपरीत ईशान कोण का कटा या घटा होना सदैव अशुभ फल देता है। ईशान कोण के घटे होने से शारीरिक कष्ट,मानसिक तनाव,अशांति,अपमान व धन हानि जैसी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।
आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व दिशा
भूखंड के आग्नेय कोण का बढ़ा होना कष्टकारी होता है जिसके कारण कार्यों में अड़चन,व्यापार में असफलता,अग्नि भय,सरकारी विभाग से दंड की स्थिति और धन हानि की सम्भावना बनी रहती है। वहीं आग्नेय कोण का कटा हुआ होना वास्तु में शुभ प्रभाव देने वाला माना गया है। ऐसे भूखंड पर बने भवन में रहने से जीवन में सुख-शांति व समृद्धि प्राप्त होती है।
नैऋत्य कोण यानि दक्षिण-पश्चिम दिशा
वास्तु नियमों के अनुसार यदि किसी भूखंड का नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ अथवा कटा हुआ हो तो दोनों ही स्थितियों में यह अशुभ फलदायक है। इस प्रकार के भूखंड पर बने मकान में रहने वाले लोगों को मानसिक कष्ट,धनहानि, पारिवारिक कलह, रोग आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ऐसे भूखंड पर भवन का निर्माण करने से बचना चाहिए।
वायव्य कोण यानि उत्तर-पश्चिम दिशा
किसी भूखंड के वायव्य कोण का ज्यादा या कम होना दोनों ही अशुभ फलदायी माने गए हैं।इस प्रकार के भूखंड पर बने भवन में रहने से मानसिक अशांति,आर्थिक नुकसान ,नौकरी या व्यवसाय में घाटा,जोड़ों में दर्द और गठिया रोग होने की संभावनाएं अधिक होती हैं।ऐसे भूखंड पर भी निर्माण करना वास्तु सम्मत नहीं माना गया है।
वास्तु के अनुसार वर्गाकार और आयताकार भूखंड पर बने भवन श्रेष्ठ होते हैं। परन्तु कभी-कभी किसी भूखंड या उस पर बने भवन का कोई कोण या विदिशा बढ़ा हुआ अथवा घटा हुआ होता है, ऐसी स्थिति में भूखंड या भवन विदिशाओं की बढ़ी या घटी दशा के अनुसार शुभ अथवा अशुभ फल देने वाले हो सकते हैं।
भूखंड के बढे़ होने का अर्थ है त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? कि वह किसी कोण या विदिशा की तरफ से आगे निकला हुआ है।अर्थात भूखंड का वह कोण 90 अंश से अधिक है। इसी प्रकार भूखंड के घटे होने से तात्पर्य उसके किसी कोण या विदिशा का कटा हुआ होना है। इसमें भूखंड का घटा हुआ कोण 90 अंश से कम हो जाता है।
ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा
भूखंड के ईशान कोण का बढ़ा हुआ वास्तु शास्त्र की दृष्टि में शुभ माना गया है। ऐसे भूखंड पर निर्मित भवन में रहने वाले लोगों को सम्मान,सुख व प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है, धन का आगमन होता है। इसके विपरीत ईशान कोण का कटा त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? या घटा होना सदैव अशुभ फल देता है। ईशान कोण के घटे होने से शारीरिक कष्ट,मानसिक तनाव,अशांति,अपमान व धन हानि जैसी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।
आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व दिशा
भूखंड के आग्नेय कोण का बढ़ा होना कष्टकारी होता है जिसके कारण कार्यों में अड़चन,व्यापार में असफलता,अग्नि भय,सरकारी विभाग से दंड की स्थिति और धन हानि की सम्भावना बनी रहती है। वहीं आग्नेय कोण का कटा हुआ होना वास्तु में शुभ प्रभाव देने वाला माना गया है। ऐसे भूखंड पर बने भवन में रहने से जीवन में सुख-शांति व समृद्धि प्राप्त होती है।
नैऋत्य कोण यानि दक्षिण-पश्चिम दिशा
वास्तु नियमों के अनुसार यदि किसी भूखंड का नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ अथवा कटा हुआ हो तो दोनों ही स्थितियों में यह अशुभ फलदायक है। इस प्रकार के भूखंड पर बने मकान में रहने वाले लोगों को मानसिक कष्ट,धनहानि, पारिवारिक कलह, रोग आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ऐसे भूखंड पर भवन का निर्माण करने से बचना चाहिए।
वायव्य कोण यानि उत्तर-पश्चिम दिशा
किसी भूखंड के वायव्य कोण का ज्यादा या कम होना दोनों ही अशुभ फलदायी माने गए हैं।इस प्रकार के भूखंड पर बने भवन में रहने से मानसिक अशांति,आर्थिक नुकसान ,नौकरी या व्यवसाय में घाटा,त्रिकोणीय व्यापार के 3 भाग कौन से हैं? जोड़ों में दर्द और गठिया रोग होने की संभावनाएं अधिक होती हैं।ऐसे भूखंड पर भी निर्माण करना वास्तु सम्मत नहीं माना गया है।
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