व्यवहारात्मक विश्लेषण से क्या आशय है?
इसे सुनेंरोकेंअन्तर्वैयक्तिक व्यवहारात्मक विश्लेषण अर्थ प्रकृति, लाभ तथा महत्व, व्यवहारात्मक विश्लेषण के विभिन्न आयाम/पक्ष। समूह प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है? और समूहगतिशीलता-अर्थ, परिभाषा, प्रकार, महत्व, समूह निर्माण के सिद्धांत, व्यवहार के आयाम । ईकाई-5.
प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है?
इसे सुनेंरोकेंव्यवसाय मे स्थितियां निरन्तर परिवर्तनशील होती है तथा कभी व्यवसाय का रूख उन्नति की ओर होता है तो कभी अवनति की ओर। व्यवसाय के इस रूख या प्रवृत्ति का अध्ययन करने के लिए विभिन्न वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन किया जाता है। इसे ही प्रवृत्ति विश्लेषण कहते है।
सामग्री विश्लेषण क्या है समझाइए?
इसे सुनेंरोकेंसामग्री विश्लेषण दस्तावेजों और संचार कलाकृतियों का अध्ययन है , जो विभिन्न स्वरूपों, चित्रों, ऑडियो या वीडियो के पाठ हो सकते हैं। सामाजिक वैज्ञानिक सामग्री विश्लेषण का उपयोग संचार में पैटर्न की नकल करने योग्य और व्यवस्थित तरीके से करने के लिए करते हैं।
व्यवहारवाद क्या है in Hindi?
इसे सुनेंरोकेंव्यवहारवाद एक मूल्य-निरपेक्ष अवधारणा है। यह व्यवहार को अपने अध्ययन, अवलोकन, व्याख्या तथा निष्कर्ष का आधार मानकर चलती है। इसके अन्तर्गत सामाजिक अनुसंधान से सम्बन्धित प्रत्येक प्रकार की वैज्ञानिक सामग्री शामिल हैं जो व्यवहार से सम्बन्धित होती है। यह राजनीति विज्ञान में क्रान्तिकारी विचारों को जन्म देने वाला दृष्टिकोण है।
व्यवहारवाद क्या है इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए?
इसे सुनेंरोकेंव्यवहारवाद में व्यक्ति के व्यवहार का एक सामाजिक संगठन के सदस्य के रूप में विश्लेषण किया जाता है । यह अध्ययन पद्धति अपना ध्यान राजनीतिक व्यवहार पर केन्द्रित करती है और राजनीतिक प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है? व्यवहार के माध्यम से राजनीति,संगठन,प्रक्रिया तथा समस्याओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करती है।
व्यवहारवाद की 8 विशेषता क्या है?
इसे सुनेंरोकेंव्यवहारवाद (behaviorism) की विशेषताएं * राजनीतिक संस्था एवं संरचना के स्थान पर केंद्रित अध्ययन पर जोर। * परिशुद्धता, पर्यवेक्षण, सत्यापन, परीक्षण, परिमाणन प्रमुख आधार है। * राजनीति के अध्ययन शोध एवं विश्लेषण के लिए अनुभवात्मक और प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण पर जोर देकर अध्ययन का केंद्र बिंदु राजनीतिक व्यवहार को ही मानता है।
व्यवहारवाद से आप क्या समझते हैं PDF?
इसे सुनेंरोकेंव्यवहारवाद एक ऐसा प्रयत्न है जो राजनीति विज्ञान के आनुभविक तत्वों को अधिक वैज्ञानिकता प्रदान करता है। संक्षेप में, व्यवहारवाद एक अनुभववादी वैज्ञानिक उपागम है जिसका लक्ष्य राजनीतिक घटनाओं एवं तथ्यों के विश्लेषण की नई इकाईयों, नई पद्धतियों, नई तकनीकों को विकसित करने के साथ इनकी वैज्ञानिक व्याख्या करना है।
व्यवहारवाद का पिता कौन है?
इसे सुनेंरोकेंमनोविज्ञान में व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में जे. बी. वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी। उन दिनों मनोवैज्ञानिकों से माँग की जा रही थी कि वे आत्म-विश्लेषण की तकनीक विकसित करें।
व्यवहारवाद का जनक कौन है?
इसे सुनेंरोकेंजॉन बी वाटसन को व्यवहारवाद के संस्थापक और जनक के रूप में जाना जाता है।
व्यवहारवादी विद्वान कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंएडवर्ड गुथरी, क्लार्क हुल और बी. एफ़. स्किनर ने व्यवहारवाद के सिद्धांत को अधिक परिष्कृत स्वरूप प्रदान किया। इन विद्वानों की प्रेरणा से मनोचिकित्सकों ने व्यवहारमूलक थेरेपी की विभिन्न तकनीकें विकसित कीं ताकि मनोरोगियों को तरह-तरह की भूतों और उन्मादों से छुटकारा दिलाया जा सके।
क्षैतिज विश्लेषण और लम्बवत विश्लेषण क्या है?
इसे सुनेंरोकेंअतः निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि लम्बवत विश्लेषण एक निश्चित तिथि को विभिन्न मदों के मध्य पाये जाने वाले संख्यात्मक सम्बन्ध का अध्ययन है । इसके विपरीत क्षैतिज विश्लेषण में विभिन्न तिथियों के मध्य एक मद का अध्ययन किया जाता है ।
वित्तीय विश्लेषण की प्रक्रिया ( Process of Financial Analysis ) क्या है ?
[ 1 ] वित्तीय विवरणों की पुनर्रचना ( Re-arrangement of Financial Statements ) :- वित्तीय तथ्यों का प्रभावपूर्ण अध्ययन करने के लिए यह आवश्यक है कि चिट्ठे व लाभ-हानि खाते के तथ्यों को किसी तर्कसंगत क्रम में उनके प्रमुख अवयवों अथवा अंगों में बाँटा जाये । लर्नर के अनुसार, "जिस प्रकार एक तितर-बितर भीड़ में खड़े व्यक्तियों को गिनना कठिन है, उसी प्रकार असम्बन्धित वित्तीय तथ्यों के झुण्डों से आर्थिक निष्कर्ष निकालना कठिन है । एक बार भीड़ को कतारों व लाइन में विन्यासित कर लिया जाये तो गणना सरल हो जाती है प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है? ।" इसी प्रकार वित्तीय विश्लेषण की सुविधा के लिए चिट्ठे व लाभ-हानि खातों के प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है? तथ्यों की पुनर्रचना विश्लेषण के उद्देश्य के अनुसार की जाती है ।
[ 2 ] संख्याओं का सन्निकटन ( Approximation of Figures ) :- विश्लेषण क्रिया में सरलीकरण के लिए संख्याओं को निकटतम हजार या लाख या करोड़ रुपयों में व्यक्त किया जाता है । ऐसा करने से विभिन्न तथ्यों में सम्बन्ध स्थापित करना सरल हो जाता है ।
[ 3 ] अवयवों से सम्बन्ध स्थापित करना ( Establishing Relationship between Elements ) :- दो अवयवों के बीच सम्बन्ध स्थापित करते समय विश्लेषणकर्ता को यह ध्यान रखना चाहिए कि ये अवयव एक दूसरे से सम्बन्धित हैं । इस कार्य के लिए विश्लेषणकर्ता को विश्लेषण के उद्देश्य का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए । वित्तीय सूचनाओं से निष्कर्ष निकालने हेतु दिये गये तथ्यों में तुलनात्मक सम्बन्ध स्थापित किया जाता है । इसके लिए वित्तीय विश्लेषक विश्लेषण की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करता है ।
[ 4 ] प्रवृत्ति का अध्ययन ( Study of Trend ) :- वित्तीय विवरण के तथ्यों में तुलनात्मक सम्बन्ध स्थापित करने के पश्चात विश्लेषक महत्त्वपूर्ण तथ्यों की भावी प्रवृत्तियों को मापता है । निर्वचन के लिए प्रवृत्ति अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण आधार प्रस्तुत करता है ।
[ 5 ] निष्कर्ष ज्ञात करना ( Drawing Conclusions ) :- यह निर्वचन की अन्तिम प्रक्रिया होती है । इसका उद्देश्य तथ्यों की व्याख्या करके संस्था की लाभदायकता एवं वित्तीय सुदृढ़ता के सम्बन्ध में राय प्रकट करना होता है । वित्तीय विश्लेषक इन निष्कर्षों को प्रबन्ध के समक्ष इस दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है कि प्रबन्धकों को निर्णय में सहायक हो सकें ।
वित्तीय विश्लेषण में भूतकालीन सूचना के विश्लेषण व वर्तमान प्रवृत्ति के आधार पर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है । लर्नर के अनुसार, "भावी अनुमान की एक क्रमबद्ध व सावधानीपूर्वक प्रक्रिया, सुदृढ़, भूतकालीन तथ्यों पर आधारित, सापेक्षिक रूप से उसी प्रकार अधिक सफल होती है, जिस प्रकार की ओझा अथवा टोना करने वाले कि तुलना में एक सुप्रशिक्षित सर्जन अधिक रोगियों को बचा लेगा ।"
प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है?
प्रश्न 28. वित्तीय विश्लेषण किसे कहते हैं? इसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वित्तीय विश्लेषण से आशय वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित विभिन्न वित्तीय सूचनाओं का विधिवत् प्रक्रिया द्वारा उनका आलोचनात्मक मूल्यांकन है ताकि इनसे प्राप्त सूचनाओं को. भली-भाँति समझा जा सके एवं उसका प्रयोग विभिन्न वित्तीय निर्णय लेने में किया जा सके। इसके अन्तर्गत वित्तीय समंकों को अन्य वित्तीय समंकों से सम्बन्धित कर व्यावसाय की लाभदायकता, क्रियात्मक ढाँचा, शोधन क्षमता व व्यवसाय की भावी प्रगति का अनुमान लगाया जाता है।
वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के उद्देश्य-
1. व्यवसाय की उपार्जन शक्ति का पता लगाना- वित्तीय विवरणों के माध्यम से व्यवसाय की उपार्जन शक्ति, विनियोग पर प्रतिफल की दर तथा आने वाले वर्षों में लाभों की प्रवृत्ति आदि का पता लगाया जा सकता है।
2. व्यवसाय की सुरक्षा तथा शोधन क्षमता का अध्ययन- व्यवसाय में विनिमय कोषं सुरक्षित है या नहीं और व्यवसाय अपने अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दायित्वों का भुगतान आसानी से करने की स्थिति में है या नहीं, इसका भी पता लगाया जा सकता है।
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प्रवृत्ति विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य है
(Main objective of Trend Analysis is)
कई वर्षों के वित्तीय विवरणों का तुलनात्मक अध्ययन करना (To make comparative study of the financial statements for a number of years) परिवर्तनों की दिशा की सूचना देना (To indicate the direction of movement) विभिन्न मदों के पूर्वानुमान में सहायता देना (To help in forecasts of various items) उपरोक्त सभी (All of the Above)
शोध : प्रविधि और प्रक्रिया/शोध क्या है?
व्यापक अर्थ में शोध या अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं की खोज और पुरानी वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं। शोध के अंतर्गत बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है। शोध का परिचय देते हुए डॉ. नगेन्द्र लिखते हैं कि-"अनुसंधान का अर्थ है परिपृच्छा, परीक्षण, समीक्षण आदि। संधान का अर्थ है दिशा विशेष में प्रवृत्त करना या होना और अनु का अर्थ है पीछे, इस प्रकार अनुसंधान का अर्थ हुआ—किसी लक्ष्य को सामने रखकर दिशा विशेष में बढ़ना—पश्चाद्गमन अर्थात् किसी तथ्य की प्राप्ति के लिए परिपृच्छा, परीक्षण आदि करना।" [१]
अध्ययन से दीक्षित होकर शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए शिक्षा में या अपने शैक्षिक विषय में कुछ जोड़ने की क्रिया अनुसन्धान कहलाती है। पी-एच.डी./ डी.फिल या डी.लिट्/डी.एस-सी. जैसी शोध उपाधियाँ इसी उपलब्धि के लिए दी जाती हैं। इनमें अध्येता से अपने शोध से ज्ञान के कुछ नए तथ्य या आयाम उद्घाटित करने की अपेक्षा की जाती है।
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