कार्य का क्षेत्र
सेप्टेम वर्ष 2007 से डीआरडीओ मुख्यालय द्वारा प्रदान के गये निर्देशों के आधार पर तकनीकी तथा प्रशासन एवं संबद्ध कैडर (समूह 'B' और समूह 'C') केंद्रीकृत चयन कर रहा है। सेप्टेम योग्य प्रतिभा को आकर्षित एवं भर्ती करने हेतु संभावित उम्मीदवारों तक पहुंचने के लिए विभिन्नर प्रकार के साधानों व तरीकों का प्रयोग कर अपने मानव संसाधन में वृद्दि करता है । सेप्टेम डीआरडीओ के कार्यक्षेत्र के अनुरूप उम्मीकदवारों की भर्ती हेतु उनके मौलिक कौशल,दृष्टिकोण और योग्यता पर ध्यान केंद्रित कर, उनकी भूमिका के तकनीकी और मौलिक अनुसंधान निर्वाह के अनुरूप मजबूत क्षमता और उपयुक्तता के साथ सही उम्मीदवार का चयन करता है । सेप्टेम ने डीआरटीसी की भर्ती के साथ-साथ प्रशासनिक एवं संबद्ध कैडर के लिए बड़ी मात्रा में उम्मीदवारों को जल्दी और कुशलता से संभालने का अनूठा अनुभव प्राप्त किया है। सेप्टेम ने अपने स्वयं की प्रणाली और प्रक्रिया को विकसित किया है ताकि उम्मीदवारों के तकनीकी और मौलिक अनुसंधान चयन की प्रक्रिया के हर चरण में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
उपलब्धियाँ (भर्ती)
- सेप्टेम द्वारा डीआरडीओ के लिए उपयुक्त, केंद्रीयकृत भर्ती प्रणाली को डिजाइन, विकसित और उन्नत बनाया गया। सेप्टेम ने वर्ष 2007 से आठ भर्ती प्रक्रिया को पूरा कर लिया है। सेप्टेम ने लगभग 30,00,000 उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित की और लगभग 6,000 उम्मीदवारों का चयन किया।
- सेप्टेम ने वर्ष 2018 से (सेप्टेम-09) भर्ती प्रक्रिया, कंप्यूटर आधारित परीक्षा (सीबीटी) के माध्यम से की।
- सेप्टेम ने डीआईएटी-पुणे, डीजीक्यूए-कानपुर, डीसीडीए-दिल्ली, सीआईटीएआर-बैंगलोर जैसी अन्य एजेंसियों को भर्ती में तकनीकी सहायता/परामर्श प्रदान किया ।
मूल्यांकन
प्रत्येक वर्ष डीआरडीओ के डीआरटीसी के कार्मिक का केन्द्रीय मूल्यांकन सेप्टेम द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें लिमिटेड फ्लेक्सिबल कॉम्प्लिमेंटरी स्कीम और परफॉर्मेंस को साक्षात्कार और एपीएआर अंकों के आधार पर आंका जाता है तथा दोनों का बराबर वेटेज दिया जाता है। पदोन्नति नीति अच्छी तरह से परिभाषित है तथा हर साल 31 अगस्त को परिणाम घोषित किए जाते हैं। सेप्टेम ने वर्ष 2020-21 से इंटरनेट के द्वारा ऑनलाइन मूल्यांकन प्रक्रिया,प्रारम्भ की हैं।
प्रशिक्षण
सेप्टेम को वर्ष 2006 में, तकनीकी तथा प्रशासन एवं संबद्ध कर्मियों के लिए डीआरडीओ प्रशिक्षण नीति(डीआरटीसी के कम से कम 75% कर्मियों के लिए 5 वर्षों में एक प्रशिक्षण)के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी । सेप्टेम, डीआरडीओ प्रयोगशालाओं/संस्थालनों के लिए प्रशिक्षण आवश्यकताओं के आंकलन के आधार पर तकनीकी तथा प्रशासन एवं संबद्ध कैडर के लिए प्रशिक्षण कैलेंडर जारी कर रहा है।
कार्य का क्षेत्र
सेप्टेम वर्ष 2007 से डीआरडीओ मुख्यालय द्वारा प्रदान के गये निर्देशों के आधार पर तकनीकी तथा प्रशासन एवं संबद्ध कैडर (समूह 'B' और समूह 'C') केंद्रीकृत चयन कर रहा है। सेप्टेम योग्य प्रतिभा को आकर्षित एवं भर्ती करने हेतु संभावित उम्मीदवारों तक पहुंचने के लिए विभिन्नर प्रकार के साधानों व तरीकों का प्रयोग कर अपने मानव संसाधन में वृद्दि करता है । सेप्टेम डीआरडीओ के कार्यक्षेत्र के अनुरूप उम्मीकदवारों की भर्ती हेतु उनके मौलिक कौशल,दृष्टिकोण और योग्यता पर ध्यान केंद्रित कर, उनकी भूमिका के निर्वाह के अनुरूप मजबूत क्षमता और उपयुक्तता के साथ सही उम्मीदवार का चयन करता है । सेप्टेम ने डीआरटीसी की भर्ती के साथ-साथ प्रशासनिक एवं संबद्ध कैडर के लिए बड़ी मात्रा में उम्मीदवारों को जल्दी और कुशलता से संभालने का अनूठा अनुभव प्राप्त किया है। सेप्टेम ने अपने स्वयं की प्रणाली और प्रक्रिया को विकसित किया है ताकि उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया के हर चरण में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
उपलब्धियाँ (भर्ती)
- सेप्टेम द्वारा डीआरडीओ के लिए उपयुक्त, केंद्रीयकृत भर्ती प्रणाली को डिजाइन, विकसित और उन्नत बनाया गया। सेप्टेम ने वर्ष 2007 से आठ भर्ती प्रक्रिया को पूरा कर लिया है। सेप्टेम ने लगभग 30,00,000 उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित की और लगभग 6,000 उम्मीदवारों का चयन किया।
- सेप्टेम ने वर्ष 2018 से (सेप्टेम-09) भर्ती प्रक्रिया, कंप्यूटर आधारित परीक्षा (सीबीटी) के माध्यम से की।
- सेप्टेम ने डीआईएटी-पुणे, डीजीक्यूए-कानपुर, डीसीडीए-दिल्ली, सीआईटीएआर-बैंगलोर जैसी अन्य एजेंसियों को भर्ती में तकनीकी सहायता/परामर्श प्रदान किया ।
मूल्यांकन
प्रत्येक वर्ष डीआरडीओ के डीआरटीसी के कार्मिक का केन्द्रीय मूल्यांकन सेप्टेम द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें लिमिटेड फ्लेक्सिबल कॉम्प्लिमेंटरी स्कीम और परफॉर्मेंस को साक्षात्कार और एपीएआर अंकों के आधार पर आंका जाता है तथा दोनों का बराबर वेटेज दिया जाता है। पदोन्नति नीति अच्छी तरह से परिभाषित है तथा हर साल 31 अगस्त को परिणाम घोषित किए जाते हैं। सेप्टेम ने वर्ष 2020-21 से इंटरनेट के द्वारा ऑनलाइन मूल्यांकन प्रक्रिया,प्रारम्भ की हैं।
प्रशिक्षण
सेप्टेम को वर्ष 2006 में, तकनीकी तथा प्रशासन एवं संबद्ध कर्मियों के लिए डीआरडीओ प्रशिक्षण नीति(डीआरटीसी के कम से कम 75% कर्मियों के लिए 5 वर्षों में एक प्रशिक्षण)के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी । सेप्टेम, डीआरडीओ प्रयोगशालाओं/संस्थालनों के लिए प्रशिक्षण आवश्यकताओं के आंकलन के आधार पर तकनीकी तथा प्रशासन एवं संबद्ध कैडर के लिए प्रशिक्षण कैलेंडर जारी कर रहा है।
तकनीकी और मौलिक अनुसंधान
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नागरिक चार्टर
परिकल्पना और ध्येय
परिकल्पना:
भूचुंबकत्व और संबद्ध क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देते हुए, उसके मार्गदर्शन और संचालन के जरिए भारत को एक वैश्विक ज्ञान शक्ति बनने में सक्षम बनाना।
ध्येय:
भूचुंबकत्व की सभी शाखाओं में अनुसंधान को बढ़ावा देते हुए, उसका मार्गदर्शन और संचालन करना। उच्च गुणवत्ता वाले डेटा के अधिग्रहण के लिए ढांचागत समर्थन (अत्याधुनिक तकनीकी और मौलिक अनुसंधान प्रौद्योगिकी का उपयोग करके) तैयार करना, जिससे मौलिक अनुसंधान संभव हो। भारत के चुंबकीय वेधशाला नेटवर्क के अनुरक्षण/आधुनिकीकरण और भूचुंबकत्व एवं संबद्ध क्षेत्रों से जुड़े अन्य प्रेक्षणों के लिए मौजूदा केंद्रों पर नई वेधशालाएं और सुविधाएं स्थापित करना। भूचुंबकत्व में अनुसंधान करने के लिए युवा प्रतिभाओं को आकर्षित करना, उन्हें प्रेरित और प्रशिक्षित करना।
तकनीकी और मौलिक अनुसंधान
22.95°C | Mist
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जैवविज्ञानों एवं जैवाभियांत्रिकी
विभाग का प्रमुख
Rakhi Chaturvedi
Professor,
Department of Biosciences and Bioengineering
Ph: 0361 - 2582201, 0361-2582211
विभाग संपर्क पता
जैवविज्ञानों एवं जैवाभियांत्रिकी विभाग के बारे में
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (आई आई टी गुवाहाटी) में जैवविज्ञानों एवं जैवाभियांत्रिकी विभाग की स्थापना नवंबर तकनीकी और मौलिक अनुसंधान 2002 में जैविक विज्ञान के आकर्षक और उभरते क्षेत्र में योगदान के लिए की गई थी। इसमें स्नातक (बी टेक) और स्नातकोत्तर (एम टेक और पीएच डी) दोनों शैक्षणिक कार्यक्रम हैं।विभाग पूर्वोत्तर भारत में अद्वितीय है, गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करता है और इसके चल रहे कार्यक्रमों के माध्यम से एक उत्कृष्ट अनुसंधान वातावरण प्रदान करता है। यह छात्रों को सक्षम, प्रेरित इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को बनाने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करता है। विभाग में विविध धाराओं और विशेषज्ञता के 38 संकाय सदस्य हैं। विभाग ने चल रहे शिक्षण और अनुसंधान पहल का समर्थन करने के लिए व्यापक अनुसंधान सुविधा और बुनियादी ढांचे का विकास किया है। विभाग के प्रमुख जोर जैव रासायनिक अभियांत्रिकी, एंजाइम और माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी, टिशू इंजीनियरिंग,प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, नैनोबायोटेक्नोलॉजी, कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी, कैंसर बायोलॉजी, संक्रामक रोग और प्रोटिओमिक्स शामिल हैं। विभाग ने सभी जोर क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए प्रयास शुरू किए हैं। मौलिक अनुसंधान के अलावा, विभाग का लक्ष्य जैव प्रौद्योगिकी आधारित उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लक्षित मांगों को पूरा करना है।
संस्थान अवलोकन
केन्द्रीय कांच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान (सेन्ट्रल ग्लास एण्ड सिरामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट-सीजीसीआरआई) आरंभिक समय में सेन्ट्रल ग्लास एण्ड सिलिकेट रिसर्च इंस्टट्यूट के नाम से बना था और यह संस्थान वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुससंधान परिषद के अंतर्गत आरंभ की गई सबसे पहली चार प्रस्तावित प्रयोगशालाओंमें से एक है | अन्य तीन प्रयोगशालाएं हैं एन.सी.एल.-पुणे, एन.पी.एल-नई दिल्ली एवं सीएफआरआई-धनबाद | इस संस्थान ने सन् 1944 में सीमित रूप में काम करना आरंभ तो कर दिया था परंतु औपचारिक रूप से इसका उद्घाटन 26 अगस्त 1950 को किया गया |
आरंभिक चरण में देश में उपलब्ध खनिज संसाधनों का पता लगाना एवं विशेष उत्पादों के विकास में उनका उपयोग करना ही मुख्य उद्देश्य था | कांच एवं सिरामिकी में गुणवत्ता पर ध्यान देना एवं कांच संबन्धित उपकरणों एवं मशीनों के निर्माण पर भी विशेष जोर डाला गया |
पचास के दशक में किए गए कार्यों के परिणामस्वरूप साठ के दशक में सीजीसीआरआई के पदार्पण से देश के आर्थिक विकास के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया और ऑप्टिकल ग्लास के क्षेत्र में सराहनीय विकास से अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में विशेष ख्याति मिली |
ऑप्टिकल कांच एक सामरिक महत्व की सामग्री है जिसका प्रयोग पेरिस्कोप, बाइनोकुलर, रेंज फाइंडर, गन-साइट, फायर-डायरेक्शन एवं सर्वे उपकरण जैसे माइक्रोस्कोप, टेलीस्कोप, कैमरा, प्रॉजेक्टर, थियोडोलाइट आदि के निर्माण में लेंस एवं प्रिस्म के प्रयोग के लिए किया जाता है | संस्थान को एक विशेष तकनीकी और मौलिक अनुसंधान कार्य सौंपा गया था जो ऑप्टिकल ग्लास के उत्पादन प्रक्रिया प्रौद्योगिकी का विकास करना था ताकि देश ग्लास के आयात तकनीकी और मौलिक अनुसंधान से छुटकारा पा सके क्योंकि ग्लास उत्पादन विश्व के कुछ ही देशों में किया जाता है और विकास प्रक्रिया एक बहुत ही सुरक्षित एवं गोपनीय तथ्य है | संस्थान ने इस विषय पर प्रौद्योगिकी प्रक्रिया का विकास सफलता पूर्वक किया एवं आवश्यक उपकरण के आरेखन एवं संरचना का विकास किया तथा 1961 में इसका उत्पादन कोई 10(दस) टन तक पहुंच गया था |
इसी समय (साठ के दशक में) ऑप्टिकल ग्लास के विकास के अलावा मुख्य गतिविधियां रहीं ग्लास एवं सिरामिकी में आधुनिक तकनीकी की शुरुआत,कांच संबन्धित मूल्यांकन में क्ले एवं माइका आधारभूत/मौलिक अध्ययन जैसे कि विशेष विशिष्ट/उपयोग/प्रयोग के लिए उनकी उपयोगिता एवं महत्वपूर्ण कार्यों में उच्च तापमान का विकास आदि |
भारतवर्ष में हो रहे विभिन्न अनुसंधान कार्यों के साथ स्पर्धा रखते हुए सीजीसीआरआई ने ‘डिफेन्सिव रिसर्च सबस्टिट्यूशन’ का रास्ता अपनाया एवं अनुसंधान-योजनाकारों ने भविष्य को भांप लिया था। ऑप्टिकल ग्लास के विकास के तुरंत बाद ही सत्तर के दशक में लेज़र ग्लास, इन्फ्रारेड ट्रांस्मिटिंग फिल्टर, सिन्थेटिक क्वार्टज सिंगल क्रिस्टल, हाईटेम्परेचर हाई एल्यूमिना सिरामिक सील एवं स्पेसर आदि पर आंरभिक कार्य शुरू कर दिया था | इन सबने सीजीसीआरआई को ‘’उद्यमशील’’ अनुसंधान करने की पहचान के साथ-साथ सर्वोपरि स्थान पर भी पहुंचा दिया है. इस क्रम में फोम ग्लास, ग्लास बॉण्डेड माइका, स्टील प्लांट रिफ्रैक्टरी आदि पर भी अनुसंधान किए गए ताकि भारतीय उद्योगों की आवश्यकताएं भी पूरी की जा सके | अस्सी के दशक में पदार्पण करते ही कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गईं जिनमें से कुछ क्षेत्रों में इस समय भी अनुसंधान कार्य चालू है | इस समय/अवधि के दौरान दूरसंचार के लिए टेलीकम्युनिकेशन, विशिष्ट सिरामिकी सामग्री, ग्लास फाइबर आधारित कम्पोजि़टों का उत्पादन, इलैक्ट्रोनिकी पर कार्य आरंभ किए गए थे | इनमें से कुछ एक क्षेत्रों में विश्वस्तरीय पहचान हासिल की गई है |
इस समय ग्रामीण पॉटरी के क्षेत्र में विकास पर जोर तकनीकी और मौलिक अनुसंधान डाला गया | ग्रामीण दस्तकारों के सहयोग से यह कार्य संभव किया गया। क्लस्टर विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने दो विस्तार केन्द्रों की स्थापना की । एक नरोड़ा, गुजरात एवं अन्य खुर्जा, उत्तर प्रदेश में जिसमें वहां के राज्य सरकार आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है और उद्योगों को काफी सुविधाएं मिली हैं जिससे पुराने तरीकों के स्थान पर नई एवं आधुनिक प्रौद्योगिकियों के प्रयोग से लाभ हुआ है |
पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के पांचमूड़ा में सीजीसीआरआई द्वारा प्रदत्त प्रौद्योगिकी की मदद् से स्थानीय मिट्टी (क्ले) के प्रयोग द्वारा पॉटरी उत्पादन स्थानीय दस्तकारों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है. सीजीसीआरआई के वैज्ञानिक सभी कार्यों में साथ रहे और दस्तकारों/कारीगरों को प्रशिक्षण से लेकर अच्छी गुणवत्त संपन्न उत्पाद में सुधार द्वारा स्थानीय जिलापरिषद ने केन्द्र को वाणिज्यिक स्तर पर चलाना आरंभ कर दिया है और ग्रामीण जनता को उसका लाभ प्राप्त कराया जाता है |
नब्बे के दशक में सीजीसीआरआई ने जिन क्षेत्रों में ध्यान दिया उनका आरंभिक कार्य पिछले दशक में ही शुरू कर दिया गया था और भारतीय उद्योगों की ओर से उनकी मांग भी प्रबल रही | इस दशक में जिन कार्यक्षेत्रों में अधिक महत्व दिया गया वे हैं राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सामरिक महत्व, औद्योगिक विकास (विशेष का सामाजिक महत्व की प्रौद्योगिकियां जैसे जल, ऊर्जा, स्वास्थ्य कल्याण, सामुदायिक सेवा आदि | हाल ही में सीजीसीआरआई ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कई कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया | कुछ कार्यक्रम हैं लिक्वीड एवं गैस सेपटेशन प्रौद्योगिकी के लिए सिरामिक सामग्री पर सूप्रा इन्सट्यूशनल परियोजना, नैनोसामग्री, फोटो पावर माइक्रोवेब ट्यूब पर नेटवर्क परियोजना आदि |
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