सच्चे जनतंत्र का तात्पर्य है– सबसे योग्य तथा सबसे अच्छे नेतृत्व में सब की सब के द्वारा उन्नति। मैजिनी
प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता
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सिद्धान्त किसे कहते हैं ? क्या .
Updated On: 27-06-2022
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Aap ko kya acha nahi laga
हेलो दोस्तो हमारे पास एक प्रश्न है जिसमें पूछा गया सिद्धांत किसे कहते हैं क्या सिद्धांत में परिवर्तन कर लो संभव है तो आइए सेलिब्रेशन हो गया देखते प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता हैं कि सिद्धांत क्या होता है फिर हम देखेंगे किसी धर्म में परिवर्तन करना संभव नहीं सिद्धांत प्रकृति में कुछ ज्ञात नियमों के पदों में भौतिक नेताओं की व्याख्या करने के लिए प्रयोगों और परीक्षण द्वारा सत्यापित परिकल्पना कोई सिद्धांत कहते हैं अगर इस परिभाषा को एक उदाहरण के माध्यम से समझे तो हम देख सकते हैं उदाहरणम देखते न्यूटन के सर्वाधिक पर गुरुत्वाकर्षण का नियम जिस का मान क्या होता है बराबर जी एम गुड थैंक यू बेटा आविष्कार होता है तो परिभाषा के माध्यम से जैसे कि न्यूटन नमक सर आइज़क न्यूटन वैज्ञानिक ने गुरुत्वाकर्षण नियम के छोरी दी थी और उन्होंने एक मान निकाला था प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता पर वह मान गया था अब बराबर जी mgm1 गुड थैंक यू बेटा आर एस कार्यालय के दो पिंडों के मध्य एक बल कार्य करता है अगर वह पिंटू का द्रव्यमान m102 होगा तो उनके मध्य की दूरी
होगी तो इस प्रकार दोनों पिंटू के बाद वीडियो कार्य करने वाला बल होगा वह गुरु ठोकर संभल हुकम जहां जी एक ग्रुप तो इस तरह को दर्शाता है तो इस मानव को वैज्ञानिकों द्वारा कई प्रयोग का परीक्षण द्वारा सिद्ध किया गया होगा अच्छा ही होगा ऑपरेशन वैज्ञानिकों द्वारा मांग के आधार पर हमें सत्य प्राप्त हुआ होगा यानी कि सफलता प्राप्त हुई होगी तो उसे हम एक सिद्धांत की परिकल्पना के अंतर्गत ले लेते हैं जैसे कि हमने जाना कि प्रकृति के क्वेश्चन ज्ञात नियम के पदों में भौतिक निकाय की व्याख्या करने के लिए कैसे की प्रकृति में बताने की कृपा करें कि नियम के माध्यम से कि प्रत्येक एक दूसरे को आकर्षित करते हैं लेकिन इनकी मांगों की यानी कि हमें कैसे पता चला क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा कुछ मान निकाले गए होंगे और यह मान जो होते हैं वह कई प्रयोग ऑपरेशन के द्वारा ज्ञात किए गए होंगे तब जब यह प्रयोग ऑपरेशन शक्ति प्राप्त हुए होंगे तभी हमें इस परिकल्पना को सिद्धांत के अंतर्गत मानव अब आगे प्रश्न में हम से यह पूछा गया कि सिद्धांत में परिवर्तन करना संभव है तो हम बोल सकते कि हां सिद्धांत में परिवर्तन करना
संभव है क्यों संभव है क्योंकि दोस्तों को आधुनिक युग के आधार पर अगर हम देखें तो हमें पता है समय के साथ सब प्रयोग का परीक्षण में भी बदलाव होते हैं तो जो प्रयोग ऑपरेशन में बदलाव होंगे तो उस स्थिति में हमें प्रत्येक स्थिति में मान सम्मान प्राप्ति नहीं होगी यानी कि अगर कुछ समय पहले प्रयोग का परीक्षण के आधार पर यह मान निकाले गया यानी कि गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं जी m1 M2 बेटा आयुष पर लेकिन अगर प्रयोग का परीक्षणों का आधुनिक युग के हिसाब से या आधुनिक युग के अनुसार उसमें परिवर्तन दिखाई देता है तो हमें मान ने भी परिवर्तन दिखाई देगा इस कारण हम बोल सकते कि सिद्धांत में परिवर्तन करना संभव है धन्यवाद
राजनीतिक सिद्धांत की प्रमुख विशेषताओं को संक्षेप में समझाइये।
राजनीतिक सिद्धांत की कुछ मूलभूत विशेषताएँ स्पष्ट की जा सकती हैं। राजनीतिक सिद्धांत मूलतः व्यक्ति की बौद्धिक और राजनीतिक कृति है। सामान्यतः यह एक व्यक्ति का चिन्तन होते हैं जो राजनीतिक वास्तविकता अर्थात् राज्य की सैद्धान्तिक व्याख्या करने का प्रयत्न करते हैं।
- विभिन्न चिन्तकों के मत - प्रत्येक सिद्धांत अपने आप में एक परिकल्पना होता है जो सही अथवा गलत दोनों हो सकता है और जिसकी आलोचना की जा सकती है अतः सिद्धांतों के अन्तर्गत हम विभिन्न चिन्तकों द्वारा किये गये अनेक प्रयत्न पाते हैं जो राजनीतिक जीवन के रहस्यों का उद्घाटन करते रहे हैं। इन चिन्तकों ने अनेक व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं जो हो सकता है हमें प्रभावित न करें परन्तु जिनके बारे में हम कोई अन्तिम राय (सही अथवा गलत) स्थापित नहीं कर सकते। राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन के उस विशेष सत्य की व्याख्या करते हैं जैसा कोई चिन्तक उसे देखता या अनुभव करता है। ऐसे राजनीतिक सत्य की अभिव्यक्ति हमें प्लेटो के 'रिपब्लिक', अरस्तू के ‘पॉलिटिक्स' अथवा रॉल्स की ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस' में मिलती है।
- व्यक्ति, समाज व इतिहास का वर्णन - राजनीतिक सिद्धांतों में व्यक्ति, समाज तथा इतिहास की व्याख्या होती है। ये व्यक्ति और समाज की प्रकृति की जांच करते हैं - एक समाज कैसे संगठित होता है और कैसे काम करता है, इसके प्रमुख तत्व कौन से हैं. विवादों के विभिन्न स्रोत कौन से हैं, उन्हें किस तरह हल किया जा सकता है, आदि।
- विषय विशेष पर आधारित - राजनीतिक सिद्धांत किसी विषय-विशेष पर आधारित होते हैं, अर्थात, हालांकि एक विचारक का उद्देश्य राज्य की प्रकृति की व्याख्या करना ही होता है परन्तु वह विचारक एक दार्शनिक, इतिहासकार, अर्थशास्त्री, धर्मशास्त्री अथवा समाजशास्त्री कुछ भी हो सकता है। अतः हम कई तरह के राजनीतिक सिद्धांत पाते हैं जिनमें इन विषयों की अद्वितीयता के आधार पर अन्तर किया जा सकता है।
- सामाजिक परिवर्तन के आधार - राजनीतिक सिद्धांतों का उद्देश्य केवल राजनीतिक वास्तविकता को समझना और उसकी व्याख्या करना ही नहीं है बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिये साधन जुटाना और ऐतिहासिक प्रक्रिया को तेज करना भी है। जैसा कि लास्की लिखते है, राजनीतिक सिद्धांतों का कार्य केवल तथ्यों की व्याख्या करना ही नहीं हैं परन्तु यह निर्धारण करना भी है कि क्या होना चाहिये। अतः राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक स्तर पर सकारात्मक कार्य तथा उनके कार्यान्वयन के लिये सुधार, क्रान्ति अथवा संरक्षण जैसे साधनों की सिफारिश करते हैं। इनका सम्बन्ध साधन तथा साध्य दोनों से है। यह दोहरी भूमिका निभाते हैं-'समाज को समझना और उसकी गलतियों में सुधार करने के तरीके जुटाना'।
- विचारधारा पर आधारित - राजनीतिक सिद्धांतों में विचारधारा का समावेश भी होता है। आम भाषा में विचारधारा का अर्थ विश्वासों, मूल्यों और विचारों की उस व्यवस्था से होता है जिससे लोग शासित होते हैं। आधुनिक युग में हम कई तरह की विचारधारायें पाते हैं, जैसे, उदारवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद आदि। प्लेटो से लेकर आज तक सभी राजनीतिक सिद्धांतों में किसी न किसी विचारधारा का प्रतिबिम्ब अवश्य है। राजनीतिक विचारधारा के रूप में राजनीतिक सिद्धांतों में उन राजनीतिक मूल्यों, संस्थाओं और व्यवहारों की अभिव्यक्ति होती है जो कोई समाज एक आदर्श के रूप में अपनाता है। उदाहरण के लिये, पश्चिमी यूरोप और अमरीका के सभी राजनीतिक सिद्धांतों में उदारवादी विचारधारा प्रमुख रही है। इसके विपरीत चीन और पूर्व सोवियत यूनियन में एक विशेष प्रकार के मार्क्सवाद का प्रभुत्व रहा। इस सन्दर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक विचारधारा स्वयं को सर्वव्यापक और परम सत्य के रूप में प्रस्तुत करती है और दूसरों को अपनाने के लिये बाध्य करती है। परिणामस्वरूप वैचारिक संघर्ष आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतों का एक विशेष अंग रहा है।
संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांतों का सम्बन्ध राजनीतिक घटनाओं की व्याख्या और मूल्यांकन से है और इनका अध्ययन विचारों तथा आदर्शों के विवरण के रूप में, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के साधन के रूप में अथवा विचारधारा के रूप में किया जा सकता है।
जनतंत्र अर्थ परिभाषा विशेषताएं सिद्धांत
जनतंत्र को गणतंत्र भी कहा जाता है। गण का अर्थ होता है – झुंड, समूह या जत्था। जनतंत्र को राजतंत्र भी कहा जाता है इसलिए लोकतंत्र के लिए गणराज्य शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। सभी शब्दों से एक ही मत या विचार स्पष्ट होता है कि किसी भी देश या राष्ट्र में राजनैतिक रूप से जब जनता का शासन स्थापित किया जाता है तो वह लोकतंत्र कहलाता है।
साधारण तौर पर जनतंत्र से यह धारणा होती है कि राज्य,जनता, चुनाव, संसद आदि का निर्माण करना। जन तंत्र को सफल बनाने के लिए इसके सिद्धांतों तथा मूल्यों का प्रयोग जीवन के आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक सभी क्षेत्रों में किया जाना चाहिए। भारत में संसदीय, प्रजातांत्रिक प्राणी को मान्यता प्रदान की गई है जो कि वयस्क मताधिकार प्रणाली पर आधारित है। इसके अंतर्गत भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता अर्थात जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,किसी भी धर्म, जाति या लिंग से संबंध रखता हो, उसे मताधिकार प्राप्त है।
जनतंत्र का अर्थ
जनतंत्र डेमोक्रेसी शब्द का हिंदी रूपांतर है। अंग्रेजी के शब्द की उत्पत्ति दो ग्रिक शब्दों – डेमोस और क्रेसी से हुई है। डेमोस का अर्थ है – जनता और क्रेसी का अर्थ है– शासन। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ हुआ “जनता के हाथ में शक्ति”। जनतंत्र केवल राजनीतिक प्रणाली ही नहीं है। इसका संबंध तथा इसके सिद्धांतों का प्रयोग जीवन के समस्त आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक आदि क्षेत्रों में किया जाना चाहिए।
“लोकतंत्र शासन की वह प्रणाली है जिसमें जनता का शासन, जनता द्वारा और जनता के लिए होता है।”
अब्राहम लिंकन
जनतंत्र की परिभाषा
जनतंत्र को अनेक शिक्षा शास्त्रियों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
जनतंत्र एक ऐसी सरकार है,जिसमें शासन की शक्ति किसी व्यक्ति अथवा वर्ग के हाथों में न रहकर समस्त जनता के हाथों में सामूहिक रूप से होती है।
लार्ड ब्रा
सच्चे जनतंत्र का तात्पर्य है– सबसे योग्य तथा सबसे अच्छे नेतृत्व में सब की सब के द्वारा उन्नति।
मैजिनी
“जनतंत्र जीवन यापन का एक धन है ना कि केवल एक राजनीतिक व्यवस्था। वह उन अधिकारों तथा स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित रहता है जो कि किसी अमुक जाति,धर्म,लिंग तथा आर्थिक स्थिति के भेदभावो से ऊपर उठकर सबके ऊपर समान रूप से लागू होते हो।”
राधाकृष्णन विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग
जनतंत्र की विशेषताएं
जनतंत्र साम्यवाद और समाजवाद के मध्य की एक कड़ी है, जिसमें मानव जीवन से संबंधित समस्त क्षेत्रों को समाहित कर लिया जाता है। इसमें राज्य के सभी वर्गों के लोग अपने भेदभाव को मिटाकर व्यक्तिगत विकास करने के साथ-साथ सामाजिक समरसता भी उत्पन्न करते हैं। वैश्वीकरण के समय में यह ही एक ऐसा रास्ता है, जिस पर चलकर विश्व समाज की स्थापना की जा सकती है। जनतंत्र के प्रमुख लक्षण एवं विशेषताएं निम्न है-
- जनतंत्र में जनता के प्रत्येक मौलिक अधिकार की रक्षा की जाती है, क्योंकि यह ही इसके आधार स्तंभ होते हैं।
- यह आधुनिक मानवतावादी चिंतन पर आधारित एक लोकप्रिय शासन व्यवस्था है। यह मानवीय मूल्यों पर पूर्ण आस्था रखता है।
- यह जनशक्ति पर ही पूर्णता आधारित होता है। हम जानते हैं कि सत्ता का मूलाधार जनता है और जनता के ही विचार से सत्ता संचालित होती है। जनता का विश्वास प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी सुख-सुविधाओं कठिनाइयों और जीविका आदि का पूर्ण स्थान रखा जाए। जिससे उनका चौमुखी विकास हो सके।
- जन तंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है। जन तंत्र में अपनी बात कहने वाले ने दोनों प्रकार की स्वतंत्रता होती है। आधुनिक समय में समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि अभिव्यक्ति के सशक्त साधन है। अतः मीडिया का निष्पक्ष, कल्याणकारी व सत्यप्रेमी होना जन तंत्र के लिए बहुत आवश्यक है।
- व्यक्ति महत्व एवं प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर जनतंत्र में व्यक्ति का विकास मनोवैज्ञानिक वातावरण में किया जाता है। यह चेतन और अचेतन मन की एकता है।
- जनतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन शांतिपूर्वक तरीके से जी सकता है। समानता व सुरक्षा का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को दिया जाता है।
- इसमें व्यक्ति के व्यक्तिगत और सामाजिक सम्मान के गौरव को भी रक्षा की जाती है। इसे मनुष्य स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन यापन करता है। यह व्यवस्था मनुष्य को उसकी रचना एवं आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने के अवसर प्रदान करती है।
जनतंत्र के सिद्धांत
जनतंत्र के मूल सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
- समानता का सिद्धांत
- स्वतंत्रता का सिद्धांत
- बंधुत्व का सिद्धांत
- समाजवाद का सिद्धांत
- न्याय का सिद्धांत का सिद्धांत
समानता का सिद्धांत
जनतंत्र में सभी व्यक्ति समान होते हैं, ना कोई छोटा होता है और ना कोई पिछड़ा होता है। किसी भी आधार का कोई भेदभाव नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति को समान सुविधाएं सुलभ होती हैं तथा यह भी आशा की जाती है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करें क्योंकि अधिकार एवं कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह सभी के लिए एक ही कानून, राजकीय सेवाएं, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि की सेवाएं भी एक समान होती है।
स्वतंत्रता का सिद्धांत
स्वतंत्रता मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। अतः मनुष्य को विचार करने, अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता को हो। कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं करेगा। यह जनतंत्र का कट्टर विरोधी है। सभी व्यक्तियों को अपनी रुचि और इच्छाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करने की स्वतंत्रता है।
बंधुत्व का सिद्धांत
स्वतंत्रता और समानता में व्यक्ति को एक दूसरे का भाई ही मानना चाहिए। प्रत्येक धर्म, जाति, लिंग आदि के व्यक्तियों ने आपस में प्रेम व भाईचारा बहुत आवश्यक है। यह सह अस्तित्व के सिद्धांत पर विश्वास रखता है। इनके माध्यम से वैमनस्य एवं युद्धों को रोका जा सकता है तथा मानव कल्याण में वृद्धि की जा सकती है क्योंकि किसी भी समस्या का हल हिंसा नहीं है।
समाजवाद का सिद्धांत
जनतंत्र समाजवादी विचारधारा से प्रेरित है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझना चाहिए। संविधान में आदर्श समाजवाद के धरना प्रस्तुत की गई है। यह पूंजीवादी व्यवस्था के स्थान व समाजवादी व्यवस्था पर विश्वास रखता है। समाज की आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिए यह आवश्यक है।
न्याय का सिद्धांत
जनतंत्र में न्याय के लिए निष्पक्षता एवं समानता की व्यवस्था है। प्रत्येक विवाद का निपटारा न्यायालय के माध्यम से पूर्ण विश्वसनीय एवं सर्वमान्य तरीके से होता है। इसमें किसी भी प्रकार के पक्षपात नीति को नहीं अपनाया जाता है।
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत
जनतंत्र राज्य पराया धर्मनिरपेक्ष भी होते हैं, क्योंकि उनका केवल एक ही धर्म को मानने वाली नहीं होती। जनता अनेक धर्मों एवं संस्कृतियों से संबंधित होती है। संविधान में किसी भी धर्म को राष्ट्र धर्म नहीं स्वीकार किया गया है। राष्ट्र के लिए प्रत्येक धर्म एक समान है और कोई भी धर्म ना तो श्रेष्ठ है ना ही किसी से निम्न।
सामाजिक न्याय
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है ? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला ?
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ है की जो व्यक्ति जिसका अधिकारी है, उसे वह देना ही न्याय है। इसमें जनता की भलाई की सुनिश्चितता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है।
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ निरंतर बदलता रहा है: उदाहरण के लिए प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का अर्थ था, कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई गलत कार्य किया है, तो उससे दंड दिया जाए अथवा उसने अच्छा कार्य किया है, तो उससे पुरस्कार दिया जाए।
परन्तु आधुनिक समय में जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार, हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो। न्याय के लिए जरूरी हैकि हम तमाम व्यक्तियों को समुचित और बराबर की अहमियत दें।
सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्यवाई को निम्न में से कौन से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है ?
(क) गरीब और ज़रूरतमंदों को निशुल्क सेवाएँ देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।
(छ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।
(क) सभी नागरिकों को जीवन की बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के आधार पर राज्य का गरीबों और जरूरतमंदों को दान के रूप में निशुल्क सेवाएँ देना अनुचित है। क्योंकि ये सेवाएँ उनका अधिकार है। इन्हें भिक्षा या कृपा के रूप में प्रदान नहीं किया जा सकता।
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है। यह तर्क बिल्कुल वाजिब ठहराया जा सकता है क्योंकि सभी नागरिकों को एक-समान अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी हैं।
(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए। यह तर्क बिल्कुल वाजिब नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि प्राकृतिक रूप से आलसी होना किसी शारीरिक विकलांगता का परिचय नहीं देता।
(छ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है। यह तर्क बिल्कुल वाजिब ठहराया जा सकता है क्योंकि न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराना राज्य के कार्यों के संबंध में न्यायसंगत हैं।
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