भारत-जापान में 'करेंसी स्वैप अरेंजमेंट' से डॉलर का काम तमाम?
20 से ज्यादा देश हैं जिनके साथ भारत का करेंसी स्वैप अरेजमेंट (सीएसए) है. इस करार के तहत दो देश अपनी स्थानीय मुद्रा में कारोबार करते हैं न कि डॉलर या यूरो मुद्राओं के बीच सहसंबंध में. इससे फॉरेन एक्सचेंज की दिक्कतों से छुटकारा मिल जाता है.
रविकांत सिंह
- नई दिल्ली,
- 30 अक्टूबर 2018,
- (अपडेटेड 30 अक्टूबर 2018, 12:35 PM IST)
भारत और जापान ने सोमवार को 75 अरब डॉलर के दोपक्षीय करेंसी स्वैप का समझौता किया. इससे देश की विदेशी करेंसी और पूंजी बाजार में स्थिरता आने की उम्मीद है. 75 अरब डॉलर का यह समझौता दुनिया का सबसे बड़ा स्वैप (विनिमय) समझौता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान यह समझौता किया गया, जहां उन्होंने जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ की मुद्दों पर बात की. सरकार ने कहा कि वह देश से पूंजी को बाहर जाने से रोकने के लिए कई कदम उठा रही है और यह फैसला भारतीय बाजार में भरोसा बढ़ाने वाला कदम है.
गौरतलब है कि अमेरिका में प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी से पूंजी पर बेहतर लाभ के लिए दुनिया भर के निवेशक मुद्राओं के बीच सहसंबंध भारतीय बाजार में लगाई अपनी पूंजी तेजी से निकाल रहे हैं और अमेरिकी बाजारों में निवेश बढ़ा रहे हैं. इससे भारतीय रुपए की मजबूती पर भी असर पड़ा है. रुपया में और गिरावट न हो, इसके लिए जापान के साथ स्वैप समझौते को हरी झंडी दी गई है.
क्या है करेंसी स्वैप अरेंजमेंट (सीएसए)
भारत और जापान के बीच सोमवार को हुए करेंसी समझौते को करेंसी स्वैप अरेंजमेंट (सीएसए) कहते हैं. इससे पहले 20 से ज्यादा देशों के साथ भारत का ऐसा समझौता है. सीएसए दो मित्र देशों के बीच होता है जिनके दोपक्षीय रिश्ते मजबूत होते हैं. ऐसे दो देशों के बीच कारोबारी संबंध भी मजबूत होते मुद्राओं के बीच सहसंबंध हैं. लिहाजा दोनों देश अपने स्थानीय करेंसी में कारोबार करें, इसके लिए यह समझौता किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार या तो डॉलर में होते हैं या यूरो में. इन दोनों करेंसी की मजबूती और गिरावट का असर अन्य देशों के कारोबार पर पड़ता है. इससे बचने के लिए सीएसए जैसे समझौते किए जाते हैं.
सीएसए के तहत समझौता किए दो देश पहले से तय करेंसी की दर पर ही आयात या निर्यात की रकम चुकाते हैं. इसके लिए किसी तीसरे देश के करेंसी, मसलन डॉलर या यूरो की मदद नहीं लेनी पड़ती मुद्राओं के बीच सहसंबंध है. आसान शब्दों में कहें तो आयातक या निर्यातक को अपनी स्थानीय मुद्रा में माल की बोली लगानी होती है. तीसरा पक्ष इस कारोबार में शामिल नहीं होता, मुद्राओं के बीच सहसंबंध इसलिए विदेश मुद्रा के विनिमय (एक्सचेंज) के झंझट से छुटकारा मिल जाता है.
किन देशों के साथ भारत का सीएसए
इसमें ज्यादातर तेल मुद्राओं के बीच सहसंबंध बेचने वाले देश हैं. अग्रणी तेल निर्यातक देशों में अंगोला, अल्जीरिया, नाइजीरिया, ईरान, इराक, ओमान, कतर, वेनेजुएला, सऊदी अरब और यमन जैसे देश हैं जिसके साथ भारत का सीएसए मुद्राओं के बीच सहसंबंध मुद्राओं के बीच सहसंबंध है. कुछ ऐसे देश भी हैं जिनके साथ तेल निर्यात का संबंध नहीं है लेकिन भारत का उनके साथ सीएसए है. इन देशों में जापान, रूस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया जैसे देश हैं. इसके अलावा सिंगापुर. इंडोनेशिया, मलेशिया, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और थाइलैंड भी हैं जिनके साथ सीएसए है.
घटेगी डॉलर पर निर्भरता
सीएसए का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि तीसरे देश की करेंसी का उपयोग कारोबार में नहीं होगा. जब दो देश अपनी स्थानीय करेंसी में डील करेंगे तो डॉलर या यूरो की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे इन दोनों प्रमुख मुद्राओं की घट-बढ़ का असर अन्य देशों के कारोबार पर नहीं पड़ेगा. फिलहाल कई विदेशी निवेशक भारत से अपना पैसा निकालकर अमेरिका में डाल रहे मुद्राओं के बीच सहसंबंध हैं जिससे डॉलर मजबूत हुआ है और रुपया गिरा है. अब जब स्थानीय करेंसी में दो देश कारोबार करेंगे तो डॉलर की जरूरत नहीं होगी और आयात या निर्यात भी बहुत महंगा साबित नहीं होगा.
भारत के साथ चीन का संबंध
चीन कई वर्षों मुद्राओं के बीच सहसंबंध से चाहता है कि भारत के साथ युआन में व्यापार हो. इसके लिए दोनों देशों के बीच सीएसए करना होगा लेकिन भारत फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं है. चीन मुद्राओं के बीच सहसंबंध की दलील है कि युआन में कारोबार होने से भारत में चीनी पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी जो फिलहाल काफी कम है. भारत चीन की विदेशी मुद्रा भी अपने यहां बढ़ा सकता है और उसे सर्विस सेक्टर मुद्राओं के बीच सहसंबंध में भी रोजगार का फायदा होगा लेकिन भारत सुरक्षा और व्यापार घाटे को देखते हुए इस समझौते पर आगे नहीं बढ़ रहा.
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