कम जोखिम में ज्यादा फायदा पाने का आसान तरीका है ऑप्शन ट्रेडिंग से निवेश, ले सकते हैं बीमा
यूटिलिटी डेस्क. हेजिंग की सुविधा पाते हुए अगर आप मार्केट में इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं तो स्थिति ट्रेडिंग क्या है? फ्यूचर ट्रेडिंग के मुकाबले ऑप्शन ट्रेडिंग सही चुनाव होगा। ऑप्शन में ट्रेड करने पर आपको शेयर का पूरा मूल्य दिए बिना शेयर के मूल्य से लाभ उठाने का मौका मिलता है। ऑप्शन में ट्रेड करने पर आप पूर्ण रूप से शेयर खरीदने के लिए आवश्यक पैसों की तुलना में बेहद कम पैसों से स्टॉक के शेयर पर सीमित नियंत्रण पा सकते हैं।
आपभी शेयर बाजार के बन सकते हैं माहिर खिलाड़ी; ट्रेडिंग के अपनाएं ये 5 नियम, होगी मोटी कमाई
शेयर बाजार के कुछ नियम हैं, जिसे अपनाकर आप भी निवेश के बड़े खिलाड़ी बन सकते हैं.
How To Become A Successful Traders Of Stock Market: शेयर बाजार में अगर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो इसमें एंट्री का रास्ता आसान है. वहीं अगर सोच-समझकर और समझदारी से योजना बनाई जाए तो शेयर बाजार में बिना किसी बाधा के एक सुसंगत और स्वतंत्र बिजनेस किया जा सकता है. हालांकि बाजार में ट्रेड वाले सभी के लिए जरूरी है कि उन्हें ट्रेडर और प्रोफेशनल ट्रेडर के बीच के गैप को कम करना चाहिए. अगर आप भी बाजार में प्रभावी रूप से कारोबार करना चाहते हैं तो तीन मुख्य बिंदुओं मसलन एंट्री, एग्जिट और स्टॉप लॉस का बेहद महत्व है. इसके साथ ही आपकी पोजिशन का साइज क्या है, यह भी बेहद अहम है. आपने जो ट्रेड की योजना बनाई है, उसका पालन करने में आप कितने सक्षम हैं और आपके अंतर-संचालन की क्षमता आपको बाजार में प्रभावी तरीके से ट्रेड करने में मदद कर सकती है. जिससे आप अपने पोर्टफोलियो का मैनेजमेंट सफलता से कर सकते हैं. जानते हैं शेयर बाजार के सफल ट्रेडर बनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
शेयर बाजार में ट्रेडिंग एक तरह से बिजनेस है, और बिना सटीक प्लान के कोई भी बिजनेस सफल नहीं हो सकता है. सिर्फ कुछ किताबें पढ़कर ट्रेडिंग में आ जाना, सिर्फ ब्रोकरेज अकाउंट खोलकर और स्थिति ट्रेडिंग क्या है? चार्टिंग प्रोग्राम खरीदकर शेयर बाजार में पैसा लगा देने से ही सफलता नहीं मिल सकती. इससे नुकसान का डर ज्यादा होता है.
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सटीक ट्रेड प्लान के लिए आपका सही स्ट्रैटेजी पर काम करना जरूरी है. इसके लिए आपको यह तय करना होगा कि आप कितना रिस्क लेने का क्षमता रखते हैं, आपके निवेश का लक्ष्य क्या है, आपका कैपिटल अलोकेशन क्या है, आप शॉर्ट टर्म या लांग टर्म के लिए निवेश करना चाहते हैं. कब किसी निवेश में एंट्री करना है, कब निकलना है और स्टॉप लॉस क्या हो, इन बातों की समझ जरूरी है. इन बातों की समझ नहीं होगी तो आप मुसीबत में आ सकते हैं.
2. ट्रेड को लेकर न रहें कनफ्यूज
जब भी आप ट्रेडिंग का प्लान कर रहे हों, आपका माइंड क्लीयर होना जरूरी है. बाजार में कई बार अफवाहें तेज उड़ती हैं, अगर आपका ध्यान उन पर गया तो प्लान बिगड़ सकता है. इसलिए निगेटिव खबरों को लेकर खुद पर दबाव न बनाएं. अपने निवेश को लेकर इमोशनल न हों. सही निवेश को चुनें और उसमें बिना डर के पैसे लगाएं. दूसरों को डरा हुआ देखकर आप अपने द्वारा बनाए गए निवेश के प्लान से दूर न जाएं. ऐसा करके आप अपना बहुत सा मुनाफा गंवा सकते हैं.
आपके निवेश का आकार क्या है, यह बहुत महत्वपूर्ण है. इससे तय होता है कि आप कितनी क्वांटिटी का शेयर खरीद या बेच सकते हैं. आप कितने कैपिटल के साथ बाजार में सहज हैं, कितना रिस्क ले सकते हैं या उतार चढ़ाव झेल सकते हैं, इससे आपका ट्रेड प्लान सही से बाजार में लागू होता है. एक बार जब आप बाजार में निवेश करते हें, समय समय पर अपने निवेश का आंकलन, अपने पोजिशन साइज का रिव्यू और बैलेंस को बनाए रखना समान रूप से जरूरी है.
जब आपका ट्रेड सही दिशा में बढ़ रहा हो, तो कुछ बेहतर स्ट्रैटेजी के साथ काम करना जरूरी हो जाता है. मसलन कब निवेश में कौन सा शेयर बढ़ाना है या कौन सा घटाना है. कहां स्टॉप लॉस लगाकर ट्रेड करना है. इस तरह से आप बाजार के जोखिम को कम कर सकते हैं.
4. सीमित कर सकते हैं अपना नुकसान
शब्द “स्टॉप लॉस” का हाल के दिनों में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. यह सही भी है क्योंकि स्टॉप लॉस एक जोखिम की पूर्व-निर्धारित राशि है जो एक ट्रेडर हर ट्रेड के साथ सहने को तैयार होता है. यह आपके नुकसान के आकार को सीमित कर देता है. भले ही आपका ट्रेड लीडिंग पोजिशन में हो, स्टॉप लॉस को अनदेखा न करें, नहीं तो आपको ज्यादा नुकसान भी उठना पड़ सकता है.
5. अति-आत्मविश्वास दे सकता है नुकसान
ट्रेडिंग में सफलता आपके आत्मविश्वास को बढ़ाता है, लेकिन आत्मविश्वास और अति-आत्मविश्वास के बीच एक अंतर है, जिसे जरूर समझें. अपने ट्रेड प्लान पर टिकें रहें और पहले से बनाई गई योजना के हिसाब से ही शेयर बाजार में चलें. भावनाओं में आकर ट्रेडिंग न करें. मसलन बहुत ज्यादा फायदे की स्थिति में भी बिना सोचे अपना अलोकेशन बढ़ाते जाएं.
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ स्थिति ट्रेडिंग क्या है? हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ । कृषि क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है ।
उद्योग
औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है जोकि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है जैसे कि ऋण के बोझ को कम करना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्मनिर्भर वितरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परिदृय को वैविध्यपूर्ण और आधुनिक बनाना, क्षेत्रीय विकास का संर्वद्धन, गरीबी उन्मूलन, लोगों के जीवन स्तर को उठाना आदि हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है । इस दिशा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगिक नीति संकल्प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारित हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारित हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रतिबंधों को हटाना, पहले सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित, निजी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनिश्चित मुद्रा विनिमय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि के द्वारा महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्यधिक अपेक्षित तीव्रता प्रदान की ।
आज औद्योगिक क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रतिशत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रतिशत अंशदान करता है ।
सेवाऍं
आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि आधरित अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रतिशत ( 1991-92 के 44 प्रतिशत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक तिहाई है और भारत के कुल निर्यातों का एक तिहाई है
भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय वैश्विक ब्रांड पहचान प्राप्त की है जिसके लिए निम्नतर लागत, कुशल, शिक्षित और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्ति के एक बड़े पुल की उपलब्धता को श्रेय दिया जाना चाहिए । अन्य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्यवसाय प्रोसिस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परिवहन, कई व्यावसायिक सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधित सेवाऍं और वित्तीय सेवाऍं शामिल हैं।
बाहय क्षेत्र
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।
Positional Trading क्या है – पोजीशनल ट्रेडिंग कैसे करे
आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि Positional Trading Kya Hai और Positional Trading Kaise Kare. लोग हर साल लाखों रुपए का मुनाफा कमाते हैं क्योंकि यह ट्रेडिंग एक ऐसी ट्रेडिंग है जो कि आपको अन्य ट्रेडिंग और से ज्यादा मुनाफा कमा कर दे सकती हैं चलिए जानते हैं पोजीशनल ट्रेडिंग के बारे.
Positional Trading Kya Hai
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Positional Trading Meaning in Hindi
Positional स्थिति ट्रेडिंग क्या है? स्थिति ट्रेडिंग क्या है? Trading का Hindi Meaning “स्थिति का व्यापार” करना होता है। इस ट्रेडिंग में हम लोग एक महीने से ज्यादा की ट्रेडिंग करते है.
Positional Trading Kya Hota Hai
जिस ट्रेडिंग में हम 1 महीने से ज्यादा की ट्रेडिंग करते है उसे ही Positional Trading कहा जाता है.
Positional Trading Kya Hai
What is Positional Trading in Hindi: स्टॉक मार्केटिंग की एक इसी स्ट्रेटेजी है जिसमे हम किसी भी एक कंपनी के शेयर को कम से कम 1 महीने से लेकर 1 साल के अन्दर तक होल्ड कर के रखते है. इसके बाद जब उस शेयर में उछाल आये तब आप उसको बैच कर मुनाफा कमा सकते है.
Positional Trading में हम Share को 1 महीने से लेकर 1 साल के अन्दर तक होल्ड करके रख सकते है. इसके बाद जब शेयर मार्केट में उछाल आता है. अप इस शेयर को बैच कर मुनाफा कमाते है.
उदाहारण के तौर पर आप किसी भी कंपनी के शेयर को 1000 रूपए के 10 शेयर को खरीदते है. जिसके कुछ महीने बाद उस शेयर में 20% का उछाल आता है. आप इस शेयर को इस भाव में बैच देते है. जिससे आपके यह 1000 के शेयर की कीमत 1200 रूपए हो जाती है. इस तरह आप इसमें 200 रूपए का प्रॉफिट कमा लेते है.
Positional Trading Kaise Kare
Positional Trading करने के लिए आपको सबसे पहले यह तय करना है की आप शेयर को कितने दिन रख सकते है. आप शेयर को कम से कम 1 महीने तक जरुर होल्ड करके रखे. जिससे आपको इसमें नुकशान होने की उम्मीद ना रहे.
इसके बाद आप किसी भी एक कंपनी के शेयर को खरीद सकते है. उदाहरण के तौर पर आप किसी भी कंपनी के 2000 की प्राइस के 10 शेयर को खरीदते है. इसके बाद आप 1900 की प्राइस के 10 शेयर और खरीद लीजिये.
इसके कुछ महीने बाद इसी एक शेयर की कीमत बढ़ कर 2500 हो जाती है. तो आपको एक शेयर पर 500 रूपए का प्रॉफिट हो जाता है. इसी तरह आपके पास 20 शेयर के 10,000 रूपए का प्रॉफिट हो जाता है.
Positional Trading Me Stop Loss Kaise Lagaye
Positional Trading में स्टॉप लोस लगाने के लिए आपको सबसे पहले इसकी एक योजना बनानी होगी. इसमें आपको यह तय करना होगा की शेयर के कितना निचे गिरने पर अपने आप बिक जाये और कितना प्रॉफिट होने पर वो शेयर अपने आप बिक जाए.
अगर आप नहीं जानते Stop Loss क्या है तो इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए आप हमारी नीचे दी गई पोस्ट को पढ़े इसमें आपको सारी जानकारी मिल जायगी.स्थिति ट्रेडिंग क्या है?
उदाहरण के तौर पर आप किसी कंपनी के कंपनी के 200 रूपए का 1 शेयर ख़रीदा. इसके बाद आप इस शेयर पर 180 का स्टॉप लोस लगा दीजिये. जिससे की यह शेयर के भाव 180 से निचे गिरे तो यह अपने आप बिक जाये. जिससे आपको नुकशान ज्यादा ना हो.
इसके अलावा आप इस स्टॉप लोस को प्रॉफिट में भी लगा सकते है. आप इस शेयर को 240 पर लगा सकते है. जिससे की यह शेयर के भाव जैसे ही 240 हो जाये तो यह शेयर अपने आप ही बिक जाए.
इस तरह अप Positional Trading में स्टॉप लोस लगा सकते है. जिससे आपको नुकशान होने से बच जाए ओए आपको मुनाफा भी अच्छा हो जाये.
Positional Trading Ke Fayde
Positional Trading से हमें बहुत ज्यादा मुनाफा होता है. इसके बहुत से और भी फायदे होते है जैसे की-
Positional Trading में हमें यह बहुत ही आसानी से पता चल जाता है की आपको किसी भी शेयर को कब खरीदना है और किस शेयर को कब बेचना है. इससे आपको इसमें नुकशान होने की गुंजाइश कम होती है.
Positional Trading को हम पार्ट टाइम करके भी बहुत मुनाफा कमाया जा सकता है. क्योंकि इसमें ट्रेड बहुत कम होते है जिससे हम इस शेयर की अच्छे से एनालिसिस कर सकते है. एनालिसिस करने की बाद हम इसमें और भी शेयर को जोड़ सकते है.
अगर आप Positional Trading के लिए शेयर को खरीदते है तो आपको इसमें वोलेटिलिटी बहुत कम होती है. इस कारन इस पर स्टॉप लोस का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
Positional Trading Ke Nuksan
Positional Trading में हमें एक शेयर को बहुत लम्बे समय तक होल्ड करके रखना होता है. इस कारन इसकी वजह से पूरी Capital Block हो जाती है.
Capital Block होने के कारन इसमें आपको बहुत ज्यादा मुनाफा नहीं होता है. पर आपको इसमें नुकशान भी नहीं होता है.
Positional Trading Se Paise Kaise Kamaye
Positional Trading एक बाकि सभी से आसन ट्रेडिंग है क्योंकी इसमें आपको रोज रोज मार्केट वाच करने की जरुरत नहीं है.
आपको बस एक बार एक कंपनी के शेयर पर रिसर्च करना है और उस कंपनी के शेयर को खरीद कर रख लेना है एक बार आप उस कंपनी के शेयर को खरीद लेते है तो बस आपको कुछ महीने का इंतज़ार करना है ताकि जैसे की उस शेयर की कीमत बढ़ जाये आप उसे बेच कर अच्छा मुनाफा कमा सके .
Positional Trading में एक बाद जरुरर याद रखे की जब भी आप शेयर ख़रीदे तो ऐसी कंपनी के शेयर को ख़रीदे जिस कंपनी के शेयर में 6 महीने के अन्दर उछाल आये और उसके शेयर की कीमत बढ़ जाये ताकि आप जब उस शेयर को बैचे तब आपको ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सके.
अगर आपको हमारी यह पोस्ट Positional Trading Kya Hai से जुड़े कुछ और प्रश्न पूछने है तो अप हमसे निचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है.
अगर आपको हमारी यह पोस्ट पोजीशनल ट्रेडिंग क्या है अच्छी लगी तो इसको अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे. जिससे उनको भी पोजीशनल ट्रेडिंग के बारे में पता चल सके.
Explainer : क्या है अल्गो ट्रेडिंग और सेबी के किस नियम से ब्रोकर्स में मचा हड़कंप, क्या इस ट्रेडिंग से मिलता है तय रिटर्न?
सेबी ने अल्गो ट्रेडिंग को लेकर ब्रोकर्स के लिए नियम बना दिए हैं.
सेबी ने हाल में ही अल्गो ट्रेडिंग को लेकर नियम बनाया है. देश में तेजी से बढ़ रही इस ट्रेडिंग को लेकर अभी तक कोई रेगुले . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : September 07, 2022, 15:15 IST
हाइलाइट्स
पिछले सप्ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.
स्टॉक की खरीद-फरोख्त पूरी तरह कंप्यूटर के जरिये की जाती है.
इसमें जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.
नई दिल्ली. अग्लो ट्रेडिंग जिसका पूरा नाम अल्गोरिदम ट्रेडिंग (Algorithm Trading) है, यह वैसे तो भारत में नया कॉन्सेप्ट है लेकिन इसका इस्तेमाल साल 2008 से ही होता रहा है.
अल्गो ट्रेडिंग को लेकर अभी तक ब्रोकर तय रिटर्न का दावा करते थे, लेकिन पिछले सप्ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं और इसके बाद से ट्रेडिंग की इस नई विधा पर बहस भी शुरू हो गई है. इस बहस को हवा तब मिली जब जिरोधा के फाउंडर निखिल कामत ने अल्गो ट्रेडिंग के तय रिटर्न वाले दावे पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, अभी तक इसे लेकर काफी भ्रम फैलाया जा चुका है.
कैसे होती है अल्गो ट्रेडिंग
अल्गो ट्रेडिंग में स्टॉक की खरीद-फरोख्त स्थिति ट्रेडिंग क्या है? पूरी तरह कंप्यूटर के जरिये की जाती है. इसमें स्टॉक चुनने के लिए जिस गणना का उपयोग होता है, वह भी कंप्यूटर द्वारा ही किया जाता है. इसीलिए इसका नाम ऑटोमेटेड या प्रोग्राम्ड ट्रेडिंग भी है. इसके लिए कंप्यूटर में पहले से ही अलग-अलग पैरामीटर्स के हिसाब से गणनाएं फीड की जाती हैं. साथ ही स्टॉक को खरीदना या बेचना है उसका निर्देश, शेयर बाजार का पैटर्न और सभी नियम व शर्ते भी पहले से फीड कर दी जाती हैं. जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.
इस सिस्टम का लिंक स्टॉक एक्सचेंज के सर्वर से जुड़ा होता है, लिहाजा बाजार की पल-पल की अपडेट भी मिलती रहती है. इसकी मदद से ट्रेडिंग का समय काफी बच जाता है और ब्रोकर को भी सही स्टॉक चुनने में मदद मिलती है. यही कारण है कि अभी तक ब्रोकर यह दावा करते थे कि अल्गो ट्रेडिंग के जरिये तय रिटर्न मिलना आसान है. उनका तर्क था कि यह सिस्टम किसी स्टॉक की भविष्य की संभावनाओं और पुराने प्रदर्शन का सही व सटीक आकलन कर सकता है.
क्यों पड़ी सेबी की निगाह
बाजार नियामक सेबी ने दिसंबर, 2021 में ही कहा था कि वह जल्द ही अल्गो ट्रेडिंग को लेकर कुछ नियम बनाने वाला है. सेबी के दखल देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी भारतीय शेयर बाजार में होने वाली करीब 50 फीसदी ट्रेडिंग इसी विधा के जरिये की जाती है. इससे पहले तक यह ट्रेडिंग पूरी तरह नियंत्रण से बाहर थी, लेकिन अब सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.
क्या है सेबी का नया नियम
बाजार नियामक ने पिछले स्थिति ट्रेडिंग क्या है? सप्ताह एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि जो भी ब्रोकर अल्गो ट्रेडिंग की सेवाएं देते हैं, वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में स्टॉक के पुराने प्रदर्शन या भविष्य की संभावनाओं की जानकारी अपने उत्पाद के साथ नहीं दे सकेंगे. यह कदम ब्रोकर्स के उन दावों के बाद उठाया गया है, जिसमें अल्गो ट्रेडिंग की मदद से निवेशकों को तय और ऊंचे रिटर्न का झांसा दिया जाता था.
सेबी ने अपने सर्कुलर में यह भी कहा है कि अगर कोई ब्रोकर या उससे जुड़ी फर्म ने अपनी वेबसाइट या अन्य किसी माध्यम से किए गए प्रचार-प्रसार में अल्गो ट्रेडिंग से जुड़े इन कयासों का उल्लेख किया है तो सर्कुलर जारी होने के 7 दिन स्थिति ट्रेडिंग क्या है? के भीतर उसे हटा दिया जाना चाहिए. निवेशकों के हितों को देखते हुए ब्रोकर भविष्य में ऐसा कोई प्रलोभन नहीं दे सकेंगे.
क्या सच में फायदेमंद है अल्गो ट्रेडिंग
भारतीय शेयर बाजार में अल्गो ट्रेडिंग का इस्तेमाल तेजी स्थिति ट्रेडिंग क्या है? से बढ़ रहा है और अब तो आधे से ज्यादा ब्रोकर इसी का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में यह तो तय है कि अल्गो ट्रेडिंग कुछ फायदेमंद है, लेकिन इसका सही उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि ब्रोकर स्थिति ट्रेडिंग क्या है? को कुछ सटीक जानकारियां मिल सकें. इसमें स्टॉक की हिस्ट्री, उसके आंकड़ों का वेरिफिकेशन और रिस्क मैनेजमेंट की गणना सबसे जरूरी है.
क्यों बढ़ रहा इसका चलन
1-हिस्ट्री की सही समीक्षा : सबसे जरूरी है कि किसी स्टॉक के पिछले प्रदर्शन की सही समीक्षा और उसके बाजार पैटर्न को समझकर ही उसके भविष्य में प्रदर्शन का आकलन लगाना चाहिए, जो कंप्यूटर बेहतर तरीके से करता है.
2-गलतियों की कम गुंजाइश : अल्गो ट्रेडिंग का पूरा काम कंप्यूटर के जरिये होता है. ऐसे में ह्यूमन एरर जैसी चीजों की आशंका शून्य हो जाती है. साथ ही यह रियल टाइम के प्रदर्शन के आधार पर भी स्टॉक का चुनाव कर सकता है.
3-भावनात्मक प्रभाव में कमी : अल्गो ट्रेडिंग में किसी स्टॉक का चुनाव करते समय मानवीय भावनाएं आती हैं, क्योंकि इसकी गणना और चुनाव पूरी तरह से मशीन के हाथ में होता है.
4-ज्यादा रणनीति का सृजन : कंप्यूटर एल्गोरिद्म के जरिये एक ही समय में सैकड़ों रणनीति बनाई जा सकती है. इससे आपका जोखिम प्रबंधन मजबूत होता है और निवेश पर ज्यादा रिटर्न कमाने के कई रास्ते खुलते हैं.
5-एरर फ्री ट्रेडिंग : अल्गो ट्रेडिंग पूरी तरह मशीन पर आधारित होने के नाते इसके जरिये गलत ट्रेडिंग या मानवीय गलतियों की आशंका भी खत्म हो जाती है. यही कारण है कि खुदरा निवेशकों में भी अब अल्गो ट्रेडिंग का चलन बढ़ रहा है.
इसके नुकसान भी हैं
-अल्गो ट्रेडिंग में बिजली की खपत ज्यादा होती है और पावर बैकअप न होने पर कंप्यूटर क्रैश भी हो सकता है. इससे गलत ऑर्डर, डुप्लिकेट ऑर्डर या फिर लापता ऑर्डर भी हो सकते हैं.
-ट्रेडिंग के लिए बनाई जा रही रणनीति और उसकी वास्तविक रणनीति के बीच अंतर हो सकता है. कई बार कंप्यूटर में खराबी की वजह से भी ऐसी स्थिति आ सकती है.
-कंप्यूटर आपको कई रणनीति और रिटर्न का कैलकुलेशन और रास्ता बताएगा, जो आपका नुकसान भी करा सकता है, क्योंकि बाजार की वास्तविक स्थितियां मशीनी रणनीति से अलग हो सकती हैं.
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